पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२८८

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पञ्चत्रिंशोऽध्यायः २६६ ।। २ ॥३ ॥४ ॥५ चत्वारिंशत्तथाऽष्टौ च सहस्त्राण्यत्र मण्डलम् । शैलराजवृतं रम्यं मेरुमूलमिति श्रुतिः तेषां गिरिसहस्राणामनेकेषु महोच्छूिताः । दिक्षु सर्वासु पर्यन्तैर्मर्यादाः पर्वताः स्मृताः निकुञ्जकन्दरनदीगृहनिर्भरशोभिताः । बहुप्रासादकटकैस्तटैश्व कुसुमोज्ज्वलैः नितम्बपुष्पमालौलैः सानुभिर्धातुमण्डितैः । शिखरैहंसकपिलैनैकप्रस्रवणावृतैः । शोभिता गिरयः सर्वे पुष्टं रत्नसमीपतैः विहंगशतसंपुष्टैः कुञ्जैरनुपमैरपि । सिहशार्दूलशरभेनैकैश्चामरवारणैः ॥ नानावर्णाकृतिधरैः सेविता विविधैर्नगैः सप्ताश्वहरिकृष्णाङ्गमेकैकं दशपर्वतम् । बाह्यमाभ्यन्तरा ये तु त्रिवाहस्तु समाः स्मृतः जष्ठरो देवकूटश्च पूर्वस्यां दिशि पर्वतौ । तौ दक्षिणोतरायामावानलनिषधायतौ कैलासो हिमवांश्चैव दक्षिणोतरपर्वतौ । पूर्वपश्चायतावेतावर्णवान्तव्यवस्थितौ योऽसौ मेलद्वजश्रेष्ठाः प्रांशुः कनकपर्वतः । विष्कम्भं तस्य वक्ष्यामि तन्मे निगदतः शृणु महापादास्तु चत्वारो मेरोरथ चतुर्दिशम् । यैषं तत्वान्न चलति सप्तद्वीपवती मही ॥६ ७ ८ । १० ११ योजनों का है ।१। उनके मण्डल का परिमाण अड़तालीस हजार योजनों का है। वह शैलराज को चारों ओर से घेरे हुये है और मनोहर मेरुमूल के नाम से प्रसिद्ध है 1२। उन हजारों पर्वतों में अनेक बड़े ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं, जो सभी दिशाओं में फैले हुये है एवं मर्यादा-पर्वत कहलाते है । ये ही पर्वत सीमाविभाजक हैं ।३॥ ये पवंत निकूजकन्दर, नदी, गुइ और झरनों से शोभित है। इनके मध्य भाग वाले तट पर अनेक कोठे बने हुये हैं, जो फूलों से सुशोभित हैं । इनके मध्य भाग में पुष्पमालाओं की ढेरी लगी हुई है. शिखर धातुओं से मण्डित है जिनसे पीले काले वाले झरने झरते रहते हैं और बड़े दृढ़ रत्नों से ये पर्वत जटित है ।४-५। वहाँ कितने ही सुन्दर कुञ्ज हैं, जिनमें हजारों पक्षी , सिंह, व्यास्रशरभ आदि जीव पड़े हुये है, चामर, हस्ती आदि विविध पशु एवं नाना वर्ण और आकृति वाले जीवजन्तुओं से वे भरे हुये हैं ।६-७ पूर्व दिशा में जष्ठर और देवकूट नामक दो पर्वत है, जो दक्षिणोत्तर भाग में लम्बे हैं और नीलनिषध पर्वत तक फैले हुये हैं । दक्षिण और उत्तर में कैलास और हिमवान् नाम के पर्वत हैं, जो पूरब से पश्चिम तक तक फैले हुये हैं और दोनो ओर समुद्र में प्रविष्ट हैं । द्विजश्रेष्ठ ! यह जो अत्युच्च कनकाचल मेरु है, उनके विष्कम्भ ( विस्तार ) के सम्बन्ध में कहते हैं, सुनिये ८-१०मेरु की चारों दिशाओं में बड़े बड़े स्तम्भपाद हैं, जो सातों द्वीपवाली पृथ्वी को पकड़े हुये हैं, जिससे कि पृथ्वी इधर उधर नहीं हिलने पाती है । इन पर्वत पदों का विस्तार दस