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अष्टत्रिंशोऽध्यायः २८५ ५७ ५८ ॥५६ ६० ६१ पद्मस्यधरस्थल्यां महाभागोऽपराजितः। इज्यते यक्षगन्धर्वैविद्याधरगणैस्तथा

तस्मिन्नायतने साक्षादनादिनिधनो हरिः। पोपहावविधैरिज्यते सिद्धचारणैः

तदनन्तसदो नाम सर्वलोकेषु विश्रुतम् । पद्ममालवलम्बाभिर्मालाभिरुपशोभितम्

तथा सहस्रशिखरकुमुदस्यान्तरेण च । पाशद्योजनायासं त्रिशद्योजनविस्तरम् ।

इषुक्षेपोच्चशिखरं नानाविहगसेवितम्

महागन्धै र्महास्वादैर्गजदेहनिभैः फलैः। मधुस्रवैर्महावृकैरुपेतं तत्समन्ततः

तत्राऽऽश्रमं महापुण्यं देर्वाषाणसेवितम् । शुक्रस्य प्रथितं तत्र भास्वरं पुण्यकर्मणः

शङ्कुकूटस्य शैलस्य वृषभस्यान्तरेण च । परूषकस्थली रम्या ह्यनेकाय (यु) तयोजना

विल्वप्रमाणैश्च शुभैर्महास्वादैः सुगन्धिभिः । फलैः प्रविलद्यते भूमिः पुरुषंवृन्तविच्युतैः

तां स्थलीमुपजीवन्ति कनरोरगसाधवः । परूषकरसोन्मत्ता मानाढयास्तत्र चारणाः

कपिञ्जलस्य शैलस्य नागशैलस्य चान्तरे । द्वियोजनशतायामा विस्तीर्णं शतयोजन स्थली मनोहरा सा हि नानावनविभूषिता । नानापुष्पफलोपेता किनरोरगसेविता ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ मुख की कान्ति भी पूर्णचन्द्र की ही तरह है । ये अपराजित महाभाग उस पझमालामण्डित स्थली के मध्य में यक्ष गन्धर्व और विद्याघरों पूजित होते है -। उष्ट साक्षात् सिद्धचारणों स सदा |५५५ स्थान में नित्य नारायण द्वारा विविध भॉति के पद्योपहार से पूजे जाते है ।५८। वह स्थान सब लोकों में अनन्त सदन के नाम से विख्यात है और पझमालाओं तथा अन्यान्य मालाओं से मंडित है । सहस्रशिखर और कुमुद पर्वतों के बी व स योजन लम्बा और तीस योजन चौड़ा तथा फेका गया तीर जितना ऊपर जा सकता है उतना ही ऊँचा पर्वत शिखर । है । वह विविध विहंग सदा कलरव करते रहते है |५६-६०। वह चारों ओर से मधु टपकानेवाले वृक्षों से मण्डित है । उन वृक्षों के फल हाथी की देह के समान बड़े-बड़े, सुगन्धित और सुस्त्रादु है । उस शिखर पर पुण्यकर्ता भगवान् शुक्राचार्य का एक आश्रम है । वह आश्रम पवित्र, देवषियों से सेवित, विख्यात और देदीप्यमान है । शङ्कुकूट और वृषभ पर्वत के बीच एक अनेक योजन विस्तृत परूषकस्थली है, जिसके वेल के समान सुगन्धित और पुरूष फल टहनियों से टपक-टपक कर वहाँ की भूमि को पंकिल वड़े बड़े, सुन्दर, सुस्वादु वनाये रहते है। मन के धनी चारणगण परूष के रस को पीकर उन्मत्त बने फिरते है और किन्नर, उरग तथा साधुगण उस स्यली में सदा विचरण किया करते है 1६१-६५। कपिंजल और नागशैल के अन्तराल में नान वनों से विभूषित स्थली है, जो दो स योजन लम्बी और सो योजन चौड़ी है विविध एक मनोहर । वह भाँति के फल-फूलों नाना से वाले प्रकार के वनों सुशोभित है। जहां किन्नर और उरग विचरण क्रिया करते