पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३०९

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२८ IU तस्य धातुविचित्रेषु कूटेषु बहुविस्तराः । अष्टौ पुर्या युदीर्णाश्च दानवानां महात्मनाम् ॥२e वज्जके पर्वते चापि अनेकशिखरोदरैः। उदीर्णा राक्षसावासा नरनारीसमाकुलाः ३० नीलका नाम ते घोरा राक्षसाः कामरूपिणः । तत्र तेऽभिरता नित्यं महाबलपराक्रमाः ३१ महानीलेऽपि शैलेन्द्रं पुराणि दश पञ्च च । हयाननानां विख्याताः किनराणां महात्मनाम् ॥३२ देवसेनो महाबाहुर्बलमिन्द्रादयस्तथा । तत्र किनरराजानो दश पञ्च च गवलाः ।३३ सुवर्णपाश्र्वाः प्रायेण नानावर्णसमाकुलैः । विलप्रवेशैर्नगरैः शैलेन्द्रः सोऽभ्यलंकृतः ३४ अतिदारुणा दृष्टिविषा ह्यग्निकोपा दुरासदः । महोरगशतास्तत्र सुवर्णवशवर्तिनः ।।३५ सुनागेऽपि महाशैले दैत्यावासाः सहस्रशः। हर्यप्रासादकलिलाः प्रांशुप्राकारतोरणः ।।३६ वेणुमन्ते महाशैले विद्याधरपुरत्रयम् । त्रिशद्योजनविस्तीर्ण पवशद्योजनायतम् ३७ उलूको रोमशश्चैव महनेत्रश्च वीर्यवान् । विद्याधरवरास्तत्र शक्रतुल्यपराक्रमाः ।।३८ वैकर्ते शैलशिखरे ह्यन्तःकन्दरनिर्भरे । महोच्चशृङ्ग रुचिरे रत्नधातुविचित्रिते ३६ तत्राऽऽस्ते गारुडिनित्यमुरगारिQरासदः । महावयुजवश्चण्डः सुग्रीवो नाम वीर्यवान् महप्रमाणैविक्रान्तैर्महाबलपराक्रमैः । स शैलो ह्यावृतः सर्वः पक्षिभिः पन्नगारिभिः ।।४१ ।४० कन्दराएँ हैं। उनकी घrतुओं से चित्रित चोटी पर दानवो के अतिविस्तृत आठ पुर हैं। अनेक शिखर-कन्दराओ से युक्त वज्ज्ञक पर्वत पर भी राक्षसो के स्थान हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष रहते है ।२८३०वहाँ महावली और पराक्रमं भयंकर कामरूप नीलक नाम के राक्षस भी नित्य निवास करते हैं । उस महानील पर्वत पर घोड़े की नरह मुंहवाले महात्मा किन्नरों के भी पन्द्रह पुर है । iहाबाह देवसेन और बली इन्द्रादि गर्वीले पन्द्रह किन्नर- राज वहाँ के अधिपति है ।३१-३३। उस पर्वतराज पर जो नगर बसे हुये है. उनमे कितने ही गुप्तद्वार हैं और विविध वर्गों की सोने की परिखासे वह नगर घिरा है । उस नगर मे सैकड़ों विषेले अजगर (साँप निवास करते है जिनके देखते ही विष चढ़ जाता है । वे अत्यन्त भयङ्कर, दुर्धर्ष और क्रोधित होने पर अग्नि की तरह देदीप्यमान हो जाने वाले हैं । परन्तु वे सुवर्ण के वशवर्ती भी है । सपों के रहने पर भी वहां उस पर्वतपर हजारों वेत्यगण निवास करते है, जिनकी अट्टालिकाओं और कोठों पर तोरण लगे हैं एवं जो ऊँची परिखओं से घिरे है। वेणुमान नामक पर्वत पर पचास योजन लम्बे और तीस योजन चौड़े विद्याधरो के तीन पुर है। उनके इन्द्र के तुल्य पराक्रमी महाबली उलूक, रोमश और महानेत्र नामक विद्याधर अधिपति है ।३४३८ बैकैक नामक पर्वत के शिखर पर गरुडपुत्र सुग्रीव निवास करते है । उस पर्वत का शिखर ऊँचा, रन-चित्रित और निर्भर कन्दराओं से युक्त है । वहाँ सुग्रीव नामक अत्यन्त बली, वायु के सामन धातुओ से शीघ्रगामी. दुर्धर्ष और सपों के निहन्ता गरुड़पुत्र है । वह पर्वत महाबली, पराक्रमी एवं विशालकाय सर्पहन्ता