पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३१५

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२६६ वायुपुराणम् अथैकचत्वारिंशोऽध्यायः नवनवत्यक्षः ।२ सूत उवाच विविक्तचरुशिखरं पत्रितं शयवर्चसम् । कैलासं देवभक्तानामालयं सुकृतात्मनाम् तस्य कूटतटे रम्ये मध्यसे कुन्दसंनिभे । योजनानां शतयामे पञ्चाशच्च तथाऽऽथतम् सुवर्णमणिचित्राभिरनेकाभिरलंकृतम्। महाभवनमालाभिर्युषितं नैकविस्तरम् धनाध्यक्षस्य देवस्य कुबेरस्य महात्मनः। नगरं तदनाधृष्यमृद्धियुक्तं सुदा युतम् तस्य मध्ये सभा रम्या नानाकनकमण्डिता । विपुला नाम विख्याता विपुलस्तम्भतोरणा तत्र तत्पुष्पकं नम नानारत्नविभूषितम् । महाविमानं चिरं सर्वकामगुणैर्युतम् मनोजवं कामगमं हेमजालविभूषितम् । वाहनं यक्षराजस्य कुबेरस्य महात्मनः तत्रैकपिङ्गलो देवो महादेवसखः स्वयम् । वसति स्म स यक्षेन्द्रः सर्वभूतनमस्कृतः ४ ॥५ ६ I७ ८ अध्याय ४१ भुवन विन्यास सूतजी बोले- उस देवकूट पर्वत के कुन्द तुल्य उज्ज्वल रमणीय मध्यम शिखर पर फैल श बसा हुआ है । यह सौ योजन लम्बा और पचास योजन चौड़ा है । इसका शिखर शर्डी की तरह उज्ज्वल, विस्तृत, शान्त और मनोहर है। अनेक सुकृतकर्मा भक्त वहाँ निवास करते है ।१-२। सुवर्णमणिर से चित्रित अनेक विशाल भवन पंक्तियो से भूषित वह एक लम्बा-चौड़ा नगर है, जो धनाधिपति महात्मा कुबेर देव का है । वह नगर शत्रु के आक्रमण से सुरक्षित होते हुये भी भव्य और वैभवसम्पन्न है। उस नगर के बीच अनेक स्तम्भ वाला, तोरणों से थुक्त और बहुविध सुवर्ण से भूषित एक मनोहर विपुला नामक सभा-भवन है ।३ ५/ वही नाना रत्नो से विभूषित पुष्पक नामक एक सुन्दर सा महाविमान है, जो सभी भोग्य पदार्थों से युक्त, मन की | तरह शीघ्रगामी, इच्छामात्र से चलने वाला और सोने के तारों से मूढा हुआ है । यही विमान यक्षराण महात्मा कुबेर की सवारी में काम आता है । वहाँ सब भूतों के पुज्य यक्षेन्द्र एकमंगल देव स्वयं निवास करते