पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४६२

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षट्पञ्चाशोऽध्यायः ४४३ ।I६३ अतः पितृन्प्रवक्ष्यामि सासश्राद्धभुजस्तु ये । तेषां गत च तत्त्वं च गतिं श्रद्धस्य चैव हि ॥६२ न मृतानां गतिः शक्या विज्ञातुं पुनरागतिः । तपसाऽपि प्रसिद्धेन किं पुनर्मासचक्षुषा श्राद्धदेवान्पितृनेतान्पितरो लौकिकाः स्मृताः । देवाः सौम्याश्च यज्वानः सर्वे चैव ह्ययोनिजः ॥६४ देवास्ते पितरः सर्वे देवास्तान्भावयन्त्युत । मनुष्याः पितरश्चैव तेभ्योऽन्ये लौकिकाः स्मृताः ।।६५ पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामहः। यज्वानो ये तु सोमेन सोमवन्तस्तु ते स्मृताः ६६ ये यज्वानः स्मृतास्तेषां ते वै बहषदः स्मृताः । कर्मस्वेतेषु युक्तास्ते तृष्यन्त्यावेहसंभवात् ॥६७ अग्निष्वात्ताः स्मृतास्तेषां होमिनो याज्ययाजिनः।+तेषां ते धर्मसाधम्र्यात्पृता सा योज्यञ्द्वजैः । ये वाऽप्याश्रमधर्मेण प्रख्यानेषु व्यवस्थिताः ६८ अन्ते च नैव सीदन्ति श्रद्धायुक्तेन कर्मणा । ब्रह्मचर्येण तपसा यज्ञेन प्रजया च वै ६६ श्रद्धया विद्यया चैव प्रदानेन च सप्तधा । कर्मस्वेतेषु ये युक्ता भवन्त्यदेहपातनात् देवैस्तैः पितृभिः सrधं सूक्ष्मकैः सोमपायकैः । स्वर्गता दिवि मोदन्ते पितृमन्तमुपासते ७१ १७० मासश्राद्ध के भोग करने वाले पितरों का वर्णन कर रहा हूँ। उनकी गति, उनका पराक्रम ओर उनको श्रीय वस्तुओं की प्राप्ति कैसे होती है इसका भी वर्णन कर रहा हूँ सावधान हो सुनिये । मृत व्यक्तियो के आवागमन का हाल कोई योग दृष्टि सम्पन्न महातपस्वी भी नहीं जान सकते, तो फिर मेरे समान चमं चक्षु वाले साधारण व्यक्ति कंसे जान सकते है ।६२-६३उन श्राद्धदेव पितरों को लौकिक पितर वहा जाता है । सब अयोनिज और सौम्यदेव, एवं यश करने वाले पितर देव तुल्य है ऐसे पितरों की देवगण, मनुष्य और पितर भी पुष्टि करते है अर्थात् सम्मान करते है । पिता, पितामह उसी प्रकार प्रपितामह और जो सोम से यज्ञ करने वाले है वे सोमवन्त कहे जाते है ।६४-६६। जो यज्ञ करने वाले होते है वे मनुष्य मर कर बहषद् पितर होते हैं। जो यज्ञ आदि सत्कमों के अनुष्ठान में रहते है वे पुनर्जन्म ग्रहण करने के समय तक तृप्त रहते हैं । उनमें से जो होमपरायण यज्ञाधिकारियों से यज्ञ करने वाले है वे अग्निष्वात्त कहे गये हैं । जो अपने आश्रम धर्मानुसार विहित अनुष्ठानों में निरत रहते है वे घर्मसाम्य के कारण योग्य ब्राह्मणों द्वारा अग्निष्वात्त ही कहे जाते है । जो श्रद्धयुक्तकर्मों को करते हैं और ब्रह्मचर्य, तप, यज्ञ, प्रजोत्पति, श्रद्धा, विद्या और दानइन सात श्रेष्ठफम में जीवन भर निरत रहते है वे मृत्यु के बाद भी कष्ट नही प्राप्त करते प्रत्युत सोमपान करने वाले वाले, सूक्ष्म-शरीर देवों ओर पितरों के साथ स्वर्ग में जाकर आनन्द प्राप्त करते है और पितरों को सन्तुष्ट + इदमर्घ नास्ति क. पुस्तके।