पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४७

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२८ पुरुषोपभोगसंबन्धातेन चासौ मतिः स्मृतः । बृहत्वाद्हणत्वाच्च भावानां सलिलाश्रयात् ॥ यास्माऍझ्यते भावान्ब्रह्मा तेन निरुच्यते । आपूरयित्वा यस्माच्च कृत्स्नान्देहाननुग्रहैः । ३२ तस्वभावांश्च नियतांस्तेन भूरिति चोच्यते । बुध्यते पुरुषश्चात्र सर्वभावान्हिताहितान् ।।३३ यस्माचधयते चैव तेन बुद्धिनिरुच्यते । ख्यातिः प्रत्युपभोगश्च यस्मात्संवर्तते ततः ।। ३४ भोगस्य ज्ञाननिष्ठत्वात्तेन ख्यातेि। रेति स्ऋतः । ख्यायते तद्गुणैर्वाsपि नामादिभिरनेकशः ।।३५ तस्माच्च महतः संज्ञ। ख्यातिरित्यमिधीयते । साक्षात्सर्वं विजानाति महत्मा तेन चेश्वरः॥३६ तस्माज्जता ग्रहश्चैव प्रज्ञा तेन स उच्यते । ज्ञानादीनि च रूपाणि ऋतुकर्मफलानि च ।।३७ चिनोति यस्माद्रोगार्थं तेनासौ चितिरुच्यते । वर्तमानान्यतीतानि तथा चानागतान्यपि ।३८ स्मरते सर्वकार्याणि तेनासौ स्मृतिरुच्यते । कृत्स्नं च विन्दते ज्ञानं तस्मान्माहात्म्यमुच्यते ।३६ तस्माद्विन्दैर्वेिदश्चैव संचिदित्यभिधीयते । विद्यते स च सर्वास्मिन्सर्वं तस्मिंश्च विद्यते ।४० तस्मात्संविदिति प्रोक्तो महान्वै बुद्धिमतरैः । ज्ञानात्तु शनमित्याह भगवाञ्ज्ञानसंनिधिः ।४१ इंद्धानां विपुरीभावाद्विपुरं प्रोच्यते बुधैः । सर्वेशत्वाच्च लोकानामवश्यं च तथेश्वरः ।४२ वृहत्वाच्च स्मृतो ब्रह्मा भूतत्वाद्भव उच्यते । क्षेत्रक्षेत्रज्ञाविज्ञानादेकत्वाच्च स कः स्मृतः ।।४३ यस्मात्पुर्यनुशेते च तस्मात्पुरुष उच्यते । नोत्पादितत्वात्पूर्वत्वात्स्वयंभूरिति चोच्यते ॥४४ और बृहण होने के कारण सलिल के आश्रय से भावों को बढ़ाता है अतएव इसका नाम ब्रह्मा है ।३० ३१ समस्त देहों तथा नियत तत्त्व भावो क अनुग्रह द्वारा भरण करता है । अतएव भू कहलाता है । इसी से पुरुष हित अहित सारे भावों का बोध करता तथा कराता है अतएव इसकी बुद्धि संज्ञा हुई । भोग के ज्ञाननिष्ठ होने के कारण इससे ख्याति तथा प्रत्युपभोग होता है एवं अपने गुणों वाले अनेक नामों से इसकी ख्याति है अतएव महत् को ख्याति कहते है । ये महात्मा सवको साक्षात् जानते हैं अतएव इनका नाम ईश्वर है ।३२३६॥ इसी से ग्रह भी उत्पन्न हुए इसलिये इसका नाम प्रज्ञा है । ज्ञान आदि रूप तथा ऋतु, कर्मफल सब को भोग के लिये चयन करता है अतएव इसे चिति कहते हैं । वर्तमान अतीत तथा अनागत सभी कार्यों का स्मरण रखता है इसलिये इसका नाम स्मृति है । समस्त ज्ञान को प्राप्त करता है अतएव इसकी संज्ञा माहात्म्य है । विन्दन अर्थात् प्राप्त करने एवं वेदन अर्थात् ज्ञान के कारण तथा उसमें सब कुछ एवं यह सव में विद्यमान रहता है इसलिये भी इसे विशाल बुद्धि वाले संविद् कहते हैं । ज्ञाननिधि ने इसे ज्ञान रूप होने के कारण ज्ञान कहा है ।३७-४१॥ द्वन्द्वों के विपुर (विशिष्ट स्थान) होने के कारण इसे पण्डित गण विपुर कहते है। लोको का सर्वेश होते से यह अवश्य ही ईश्वर है । बृहत् होने से ‘ब्रह्म’ एवं उद्धृत होने से ‘भव’ तथा क्षेत्र के विज्ञान एवं एकत्व के कारण इसे 'क' कहते हैं। पुरी में शयन करता है इसलिये पुरुष कहलाता है। किसी ने इसे उरपन्न नही किया एवं सबसे पहले होने के हेतु इसे स्वयम्भू कहते हैं ।४२-४४