४८२ वायुपुराणम् ।।८४ यस्मान्न हन्यते मानैर्यहन्परिगतः पुरः। [* यस्मऽवृषन्ति ये धीरा महान्तं सर्वतो गुणैः । तस्मान्महर्षयः प्रोक्ता बुद्धेः परमदाशिनः] ।।८२ ईश्वराणां शुभास्तेषां मानसा औरसश्च ते । अहंकारं तपश्चैव त्यक्त्वा च ऋषितां गतः ॥८३ तस्मात्तु ऋषयस्ते वै भूतादौ तत्त्वदर्शनाः । ऋषिपुत्रा ऋषकास्तु मैथुनाद्गर्भसंभवाः तन्मात्राणि च सत्यं य ऋषन्ते ते महौजसः। सप्तर्षयस्ततस्ते वै परमाः सत्यदर्शनाः t८५ ऋषीणां च सुतास्ते तु विज्ञेय ऋषिपुत्रः । ऋषन्ति वै घृतं तस्माद्विशेषां चैव तत्त्वतः ।। तस्माच्छतर्षयस्तेपि घृतस्य परिदर्शनात् ८६ अव्यक्तात्मा महात्मा चहंकारात्मा तथैव च। भूतात्मा चेन्द्रियात्मा च तेषां तज्ज्ञानमुच्यते । इत्येता ऋषिजातीस्तु नामभिः पञ्च वै शृणु भृगुर्मरीचिरत्रिश्च अङ्गिराः पुलहः क्रतुः । मनुर्दक्षो वशिष्ठश्च पुलस्त्यश्चेति ते दश ।। ब्रह्मणो मानसा होत उद्भूताः स्वयमीश्वराः ८७ ८८ के मानस पुत्र ऋषिगण आदि काल में स्वयमेव उत्पन्न हुये थे । जो किसी मान (परिमाण) द्वारा नापा नही जा सकता अर्थात् जिसके परिमाण की कोई सीमा नहीं है, वही महान् कहा जाता है । जो बुद्धि के पारदर्शी (परम बुद्धिमान् ) तथा धैर्यशाली विद्वान् गण, सभी ओर से सभी गुणों में महान् का अवलम्बन करते है अथवा उस (मह्न्) के सान्निध्य को प्राप्त करते है, वे महषि कहे जाते हैं ।८०८२। उन परम ऐश्वर्यशाली महषियों के औरस तथा मानस पुत्रों ने भी अहङ्कार एवं अज्ञान का परित्याग कर ऋषित्व को प्राप्ति की ।८३इस प्रकार सभी चराचर जीवों में तत्व के दर्शन करने वाले ऋषि कहलाये और उन नाषया के मैथुन द्वारा गर्भ उत्पन्न होने वाले ऋषक से पुत्र गण सत्य पुजारी एवं कहलाये । जो के परम महातेजस्वी ऋषिगण पंचतन्मात्राओं एव सत्य पर निर्भर हने वाले हैं, वे सप्तष कहलाते है । ऋषया पुत्र गण, जो कि ऋषीकों के नाम से विख्यात हैं, शास्त्रों के तत्व पर विशेष अधिकार रखते हैं, अतः शृत ज्ञान (शास्त्रीय ज्ञान के सम्यक् विश्लेषण करने के कारण वे भूतप नाम से विख्यात है ।८४-८६ अव्यक्तारमा महात्मा, अहङ्करात्मा, भूतात्मा तथा इन्द्रियात्मा-ये ऋषिगण पच प्रकार के ज्ञान का अनुसार करते कहे जाते हैं । ऋषियों की यह जाति पाँच प्रकार की है, जिनको नाम सहित बतला रहा हूँ ' सुनिये । भूगु, मरीचि, अत्रि, अङ्गिराः पुलहऋतु, मनु, दक्ष वशिष्ठ और पुलस्त्यन्ये दस ऋषि गण अति ऐश्वर्यशाली एवं ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे गये हैं, जो सृष्टि के आदिकाल में स्वयमेव आविर्भूत हुए थे।
- धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्यो घ. पुस्तके नास्ति ।