पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५४७

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५२६ वायुपुराणम् अहोऽस्य तपसो वीर्यमहो श्रुतमहो हुतम् | स्थिताः सप्तर्षयः कृत्वा यदेनमुपरि ध्रुवम् ॥ ध्रुवे दिवं समासक्तमीश्वरः स दिवस्पतिः ॥८२ ।।८४ ॥८५ ॥८६ ।।८७ ध्रुवापुष्टि च भव्यं च भूमिः सा सुषुवे नृपौ | स्वां छायामाह वै पुष्टिर्भव नारी तु तां विभुः ॥८३ सत्याभि व्याहृते तस्य सद्यः स्त्री साऽभवत्तदा । दिव्यसंहननच्छाया दिव्याभरणभूषिता छायायां पुष्टिराधत्त पञ्च पुत्रानकल्मषान् । प्राचीनगर्भ वृषकं वृकं च वृकलं धृतिम् पत्नी प्राचीनगर्भस्य सुवर्चा सुषुवे नृपम् । नाम्नोदारधियं पुत्रमिन्द्रो यः पूर्वजन्मनि संवत्सरसहस्रान्ते सकृदाहारमाहरत् । एवं मन्वन्तरं युक्तमिन्द्रत्वं प्राप्तवान्विभुः उदारधेः सुतं भद्राऽजनयत्सा दिवंजयम् । रिपुं रिपुंजयं जज्ञे वराङ्गी सा दिवंजयात् रिपोराधत्त बृहती चाक्षुषं सर्वतेजसम् । ÷ तस्य पुत्रो मनुविद्वान्ब्रह्मक्षत्रप्रवर्तकः व्यजीजनत्पुष्करिण्यां वारुण्यां चाक्षुषं मनुम् । प्रजापतेरात्मजायामरण्यस्य महात्मनः + चाक्षुषं नाम विख्यातं मनुं धर्मार्थकोविदम् । मनोरजायन्त दश नहलायां शुभाः सुताः ॥ कन्यायां वै महाभाग वैराजस्य प्रजापतेः ।८८ ॥८६ 11E0 ॥६१ हवनादि सत्कार्य धन्य है, जिनके कारण सातो ऋषियों के ऊपर निश्चल पद इसने प्राप्त किया है। परम ऐश्वर्यशालीनभगवान् भास्कर भी आकाशमण्डल मे इस ध्रुव का आश्रय ग्रहण करते है | भूमि ने ध्रुव के संयोग से पुष्टि और भव्य नामक दो नरपतियों को उत्पन्न किया। परम ऐश्वर्यशाली पुष्टि ने अपनी छाया (परछाई) से कहा कि तू स्त्री हो जा १८२-८३ | उस समय पुष्टि के इस प्रकार के सत्य एव आग्रहपूर्ण आदेश पर छाया शीघ्र ही दिव्य आभूषणों से विभूषित तथा दिव्य अभावयवो से सुशोभित स्त्री के रूप में परिणत हो गई। पुष्टि ने अपनी उस छाया नामक पत्नी में प्राचीन गर्भ, वृषक, वृकल घृि नामक पाँच पुत्रो को उत्पन्न किया, जो सब के सब निष्पाप थे । प्राचीन गर्भ की सुवर्चा नामक पत्नी ने राजा उदारधी नामक पुत्र को समुत्पन्न किया, जो पूर्व जन्म मे इन्द्र के पद पर अभिषिक्त था । उस परम प्रतापी तथा ऐश्वर्यं सम्पन्न राजा ने एक सहस्र वर्ष बीत जाने पर केवल एक बार भोजन कर एक मन्वन्तर पर्यन्त इन्द्र पद की प्राप्ति की थी । भद्रा ने उदारधी के संयोग से दिवंजय नामक पुत्र को उत्पन्न किया । दिवंजय के संयोग से वराङ्गी ने शत्रुओ को जीतने वाले रिपु नामक पुत्र को उत्पन्न किया । बृहती ने रिपु के संयोग से परम तेजम्बी चाक्षुप नामक युत्र को उत्पन्न किया । उस चाक्षुष का पुत्र परम विद्वान् मनु हुआ जो ब्राह्मणों तथा क्षत्रियो का प्रवर्तक हुआ |८४-८६। उस रिपु ने धर्मार्थ के जानने वाले परम प्रसिद्ध उस चाक्षुप मनु को वरुण की पुत्री पुष्करिणी मे उत्पन्न किया था । हे महाभाग्यशालियों ! वैराज नामक प्रजापति ÷ इदमर्ध नास्ति क. पुस्तके | + इदमर्ध नास्ति क. पुस्तके |