पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५७५

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५५४ वायुपुराणम् तथेति समनुज्ञातो महादेवः स्वयंभुवा | पुत्रत्वे कल्पयामास महादेवस्तथा भृगुम् ॥ वारुणा भृगवस्तस्मात्तदपत्यं स च प्रभुः द्वितीयं तु ततः शुक्रमङ्गारेष्वपतत्प्रभुः । अङ्गारेष्दङ्गिरोऽङ्गानि संहितानि ततोऽङ्गिराः संभूति तस्य तां दृष्ट्वा वर्ब्रह्माणमब्रवीत् | रेतोधास्तुभ्यमेवाहं द्वितीयोऽयं समास्त्विति एवमस्त्विति सोऽप्युक्तो ब्रह्मणा सदसस्पतिः | तस्मादगिरसश्चापि आग्नेया इति नः श्रुतम् षट्कृत्वस्तु पुनः शुक्रे ब्रह्मणा लोककारिणा । हुते समभवंस्तत्र षड्ब्रह्माण इति श्रुतिः मरीचिः प्रथमस्तन मरीचिभ्यः समुत्थितः । क्रतो तस्मिन्सुतो जज्ञे यतस्तस्मात्स वै क्रतुः अहं तृतीयं इत्यर्थस्तस्मादन्त्रिः स कोर्त्यते । केशैश्च निशितैर्भूतः पुलस्त्यस्तेन स स्मृतः केशलम्बैः समुद्भूतस्तस्मात्तु पुलहः स्मृतः । वसुमध्यात्समुत्पन्नो वसुमान्वसुधाश्रयः वसिष्ठ इति तत्त्वज्ञः प्रोच्यते ब्रह्मवादिभिः । इत्येते ब्रह्मणः पुत्राः मानसाः षण्महर्षयः ।।३९ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ॥४७ अतः यह ब्रह्मपि मेरा पुत्र हो । जब 'यह भृगु मेरा ही पुत्र हो' | ऐसा शिवजी ने प्रकट किया । तदनन्तर स्वयम्भु कहा कि 'ऐसा ही होगा । तब शिव ने भृगु को अपने पुत्र रूप में स्वीकार किया। इसी कारणवश भृगु गोत्र ने ने गोत्रवाले अग्नि गोत्रीय मे उत्पन्न होनेवाले वरुण वंशीय कहलाते हैं, वे प्रभु भृगु भगवान् शिव की सन्तान हुए | तदन्तर भगवान् ब्रह्मा पुनः द्वितीय बार वीर्य को यज्ञाग्नि के अगार के ऊपर आहुति डाला जिससे उन अंगारों पर अङ्गो प्रत्यंगों समेत अंगिरा ऋषि प्रार्दूभूत हुए |३८-४०१ ब्रह्मा की इस अभिनव सम्भूति को प्रकट हुआ देख अग्नि ने कहा, ब्रह्मन् ! मैने तुम्हारे दिये हुये वीर्य को धारण किया था, अतः यह दूसरा पुत्र मेरा हो । सभा मे प्रधान के पद पर समासीन ब्रह्मा ने अग्नि की प्रार्थना का अनुमोदन किया कि ऐसा ही हो । यही कारण है कि अंगिरा कहे जाते है—ऐसा हमने सुना है । तदनन्तर लोकसृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने छः बार अग्नि मे अपने वीर्य की आहुति दी । जिससे छः ब्राह्मण उत्पन्न हुये – ऐसा सुना जाता है | जिससे सर्वंप्रथम अग्नि की मरीचियों से मरीच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । यतः उस ऋतु (यज्ञ ) में एक अन्य चौथा पुत्र भी उत्पन्न हुआ अत: उसका नाम ऋनु रखा गया । मै तृतीय हूँ —ऐसा कहते हुए यतः एक अन्य पाँचवें पुत्र की उत्पत्ति हुई अतः वह अत्रि' नाम से प्रसिद्ध हुआ। एक अन्य पुत्र अपने तीक्ष्ण केशों के कारण पुलस्त्य नाम से स्मरण किया गया ।४१-४५। लम्बे केशों के साथ उत्पन्न होने के कारण पुलह नाम प्रसिद्ध हुआ | वसु (अनादि सामग्री) के मध्य से यतः उत्पन्न हुआ अतः समस्त वसुधा का आश्रयभूत वसुमान नाम रखा गया | तत्त्वों के जानने वाले ब्रह्मवादी लोग उसे वशिष्ठ नाम से पुकारते हैं | ये ब्रह्मा के छः मानसिक पुत्र महर्षि कहे गये है | ये सब के १. पीछे उत्पन्न होनेवाले छः पुत्रों में अत्रि की क्रम संख्या तीसरी ही थी ।