पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६१५

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५६४ वायुपुराणम् तेषां प्रधानाश्चत्वारो विक्रान्ताः सुमहावलाः । सहस्रबाहुयेष्ठस्तु वाणो द्रविणसंमतः ॥ कुम्भनाभो गर्दभाक्षः कुशिरिस्येवमादयः शकुनी पूतना चैव कन्ये द्वे तु बलेः सुते । बलेः पुत्राश्च पौत्राश्च शतशोऽथ सहस्रशः बलियों नामविख्यातो गणो विक्रान्तपौरुषः | + बाणस्य चेन्द्रमनसो लौहित्यमुपपद्यते दितिविनष्टपुत्रा व तोषयामास कश्यपम् । स कश्यपः प्रसन्नात्मा सम्यगाराधितस्तया वरेण च्छन्दयामास सा च वन्ने वरं ततः । स तु तस्यै वरं प्रादात्प्राथितं भगवान्प्रभुः ॥ किमिच्छ्सीति चाप्युग्रो मारीचस्तामभाषत मारीचं कश्यत्रं तुष्टं भर्तारं प्राञ्जलिस्तथा । हत्पुत्राऽस्मि भगवन्नादित्यैस्तव सुनुभिः शक्रहन्तारमिच्छेयं पुत्रं दीर्घतपोन्वितम् । अहं तपश्चरिष्यामि गर्भमाधातुमर्हति तस्यास्तद्वचनं श्रुत्वा मारीचः कश्यपस्तथा । प्रत्युवाच महातेजा दिति परमदुःखिताम् एवं भवतु भद्रं ते शुचिर्भव तपोधने । जनयिष्यति सत्पुत्रं शक्रहन्तारमाहवे पूर्ण वर्षशतं तादच्छुचिर्यदि भविष्यसि । पुत्रं त्रिलोकप्रवरमथ त्वं जनयिष्यसि ॥८३ ॥८४ ॥८५ ॥८६ ॥८७ ॥८८ ॥८६ 1180 ॥६१ ॥६२ परम समृद्ध दैत्य था, अन्य तीन कुम्भनाभ, गर्दभाक्ष और कुशि थे, इनके अतिरिक्त अन्य भी थे 1८१-८३॥ बलि को शकुनो और पूतना नामक दो पुत्रियाँ थी । वलि के पुत्र-पौत्रों की संख्या सैकड़ों क्या सहस्रों तक पहुँच गई थी। जिनके नाम बलिगण थे, वे सव परम विक्रमशील थे | इन्द्र के समान मनस्वी वाण की राजधानो लौहित्यपुर थी । पुत्रो के नष्ट हो जाने पर दिति ने सेवा द्वारा कश्यप को सन्तुष्ट किया | दिति को भली-भाँति सेवा करने पर प्रसन्न होकर कश्यप ने वरदान से उसे प्रसन्न किया । दिति न उनसे वरदान माँगा और भगवान् कश्यप ने उसके अभिलषित वरदान को दिया | मरीचि पुत्र उग्रतेजा महर्षि कश्यप ने दिति से पूछा कि 'तू क्या चाहती है' १८४-८७। अपने पतिदेव मरीचि पुत्र महर्षि कश्यप को सुप्रसन्न देख दिति ने हाथ जोड़कर कहा, भगवन् ! आपके पुत्र आदित्यों (अदिति के पुत्रो) द्वारा मेरे सभी पुत्रों का विनाश हो गया, अब मैं परम तपस्वी, एवं इन्द्र को मारने में समर्थ एक पुत्र को प्राप्त करने की इच्छा करती हूँ | ऐसे प्रभावशाली पुत्र को प्राप्त करने के लिए मैं तपश्चर्या कर रही हूँ, आप गर्भाधान करें ।' ऐसी बातें सुन महान तेजस्वी मारीच पुत्र महर्षि कश्यप ने परम दुखिनी दिति से कहा, हे तपोधने ! ऐसा ही होगा | तेरा कल्याण होगा, तू पवित्र आचरण कर | अवश्य ही युद्धस्थल मे इन्द्र के संहार करने वाले सुपुत्र को तू उत्पन्न करेगी 1८८-११। यदि तू पूरे सौ वर्ष तक पवित्र रहेगी तो त्रैलोक्यविजयी पुत्र को उत्पन्न करेगी ।' ऐसी बातें दिति से कर महातेजस्वी + तस्मिन्गणे हते देवविक्रान्ते दुर्जयेऽमरीरित्यधिकं ख. पुस्तके |