पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६२४

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1 अष्टषष्टितम्रोऽध्यायः बलेः पुत्रौ महावीर्यौ तेजसाइप्रतिमावुभौ । कुम्भिलश्चक्नवर्मा च स फर्णः पूर्वजन्मनि विरक्षस्यापि पुत्रौ द्वौ कालकश्च वरश्च तौ | विषस्य त्वभवन्पुत्राश्चत्वारः क्रूरकणिकः ॥ श्राद्धहा यज्ञहा चव ब्रह्महा पशुहा तथा 1 फ्रान्ता दनायुषापुत्रा वृत्रस्यापि निबोधत । जज्ञिरे श्वसनाद्घोराद्वृत्रस्येन्द्रेण युध्यतः भर्तारो मनसा ख्याता राक्षसाः सुमहाबलाः । शतं तानि सहस्राणि महेन्द्रानुचराः स्मृताः सर्वे ब्रह्मविदः सौम्या धार्मिका: सूक्ष्ममूर्तयः । प्रजास्वन्तर्गताः सर्वे निवसन्ति सुधार्मिका: दैत्यानां दानवानां स सर्ग एष प्रकीर्तितः । प्रवाह्यजनयत्पुत्रान्यज्ञं वै गायनोत्तमान् सत्त्वः सत्त्वात्मकश्चैव कलापश्चैव वीर्यवान् । कृतवीर्यो ब्रह्मचारी सुपाण्डुश्चैव सप्तमः पनश्चैव तरण्यश्च सुचन्द्रो दशमस्तथा । इत्येते देवगन्धर्वा विज्ञेयाः परिकीर्तिताः इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते उपोद्घातपादे कश्यपीयप्रजासर्गो नामाष्टषष्टितमोऽध्यायः ।।६८।। Ģ ६०३ ॥३२ ॥३४ ॥३५ ॥३६ ॥३७ ॥३६ कुम्भिल और चक्रवर्मा, यह बलि पूर्व जन्म में कर्ण था । विरक्ष के भी काल और वर नामक दो पुत्र थे | विष के अतिक्रूरकर्मा चार पुत्र हुए, जो श्राद्धहा, यज्ञहा, ब्रह्महा और पशुहा के नाम से विख्यात थे |३०-३३॥ दनायुषा के चार पुत्रों का विवरण कह चुका अब वृत्र के वृत्तान्त को सुनिये | इन्द्र के साथ युद्ध करते समय वत्र के घोर श्वास से अतिबलवान्, भरण-पोषण करनेवाले, मानस नाम से विख्यात राक्षसों की उत्पत्ति हुई, तिनमें से एक लक्ष महेन्द्र (शिवजी) के अनुचर कहे जाते हैं । वे शिव के अनुचर राक्षस गण, सब के सब ब्रह्मज्ञानी, सौम्य, धार्मिक एवं सूक्ष्ममूर्तिधारी है, वे प्रकृति से परमधार्मिक एवं प्रजावर्ग में निवास करनेवाले है । दैत्यों एवं दानवों की यह सृष्टि कथा कह चुका | प्रवाही ने यज्ञ क्षेत्र में सुप्रसिद्ध गायक पुत्रों को उत्पन्न किया, जिनके नाम ये है । सत्त्वन, सत्त्वात्मक, कलाप, वीर्यवान् कृतवीर्य, ब्रह्मचारी, सुपाण्डु, पन, तरण्य और सुचन्द्र | इन दसो पुत्रों को देवताओं का गन्धर्व जानना चाहिये, जिनका वर्णन मैं कर चुका ३४-३६। श्री वायुमहापुराण में पृथु वंशानुकीर्तन नामक अड़सठवां अध्याय समाप्त ॥६८॥