पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३५

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वायुपुराणम् रजःसत्त्वतमोवृत्तविश्वरूपाः स्वभावतः । मातुलं त्वनुयातास्ते पुत्रका गुणवृत्तिभिः इत्येवमुक्त्वा भगवान्खशामप्रतिमां तदा | पुत्रावाहूय साम्ना वै चक्रे सोममभीतयः (?) ताभ्यां च यत्कृतं तस्यास्तदाचष्ट तदा खशा | मात्रा यथा समाख्यातं कर्म ताभ्यां पृथक्पृथक् ॥ तेन धात्वर्ययोगेन तत्त्वदर्शी चकार ह यक्ष इत्येष धातुर्वै खादने कृषणे च सः । यक्षयत्युक्तवान्यस्माश्वस्मायक्षो भवत्ययम् रक्ष इत्येष धातुर्यः पालने स विभाव्यते । उक्तवांश्चैव यस्मात्तु रक्ष मे मातरं खशाम् ॥ नाम्नाऽयं राक्षसस्तस्माद्भविष्यति तवाऽऽत्मजः . स तदा तद्विधान्दृष्ट्वा विज्ञाय तु तयोः पिता | तथा भाविनमर्थं च बुद्ध्वा मातृकृतं तयोः तावुभौ क्षुधितौ दृष्ट्वा विस्मितः परिमृग्य च । तयोः प्रादिशदाहारं प्रजापतिरसृग्वसे पिता तो क्षुधितौ दृष्ट्वा वरं चेमं तयोर्ददौ । युवयोर्हस्तसंस्पर्शो नक्तमेव तु सर्वशः नक्ताहारविहारौ च दिवास्वप्नोपभोगिनौ । नक्तं चैव बलीयांसौ दिवास्वप्नावुभौ युवाम् ६१४ ॥९७ ॥६८ 118E ॥१०० ॥१०१ ॥१०२ ॥१०३ ॥ १०४ ॥१०५ विश्व के प्राणियों के स्वभाव राजसिक, सात्त्विक एवं तामसिक प्रकृति के होते हैं। तेरे पुत्रगण गुणों एवं आचरणों मे अपने मामा के अनुगामी हैं। भगवान् कश्यप ने अनुपम सुन्दरी खशा से इस प्रकार की बातें कर सान्त्वना भरे स्वर से दोनों पुत्र को बुलाया और उन्हें भय रहित किया (?) तदनन्तर खशा ने अपने साथ उन दोनो पुत्रों ने जैसा व्यवहार किया था, सब कह सुनाया । माता ने उनके व्यवहारो को पृथक्-पृथक् जैसा बतलाया उसी के अनुरूप धातु के अर्थ का आश्रय लेकर सत्त्वदर्शी कश्यप ने उनका नामकरण किया |६६-६८। 'यक्ष' यह धातु भक्षण करने तथा कर्षण ( खीचने) के अर्थ मे प्रयुक्त होता है, यतः इस (ज्येष्ठ पुत्र ) ने यक्षयति (भक्षण करता है अथवा खोचता है) का उच्चारण किया था अतएव यह यक्ष के नाम से विख्यात हो । 'रक्ष यह जो धातु है वह पालन करने के अथ में प्रयुक्त एवं प्रसिद्ध है, यतः तुम्हारे इस दूसरे पुत्र ने 'मेरी माता खशा की रक्षा करो, ऐसा कहा था, अतः इसका नाम राक्षस होगा ।' इस प्रकार उन दोनो वालकों के पिता कश्यप ने उस समय नाम करण करने के बाद उन्हे भूखा जान, माता के साथ किये गये उनके व्यवहारों को सोच समझकर एवं भवितव्यता को वैसी ही जानकर तदनुकूल कार्य किया ।१००-१०२। उन दोनों को क्षुधा से पीड़ित देख उनकी मनोभावनाओं का पता पाकर प्रजापति कश्यप जी परम विस्मित हुये और आहार के लिये रक्त और चर्बी को भक्षण करने का उन्हें आदेश दिया। इसके अतिरिक्त पिता (कश्यप) ने उन्हें बहुत क्षुधा पीड़ित देख वरदान भी दिया कि रात्रि के समय तुम दोनो के हाथों में सभी वस्तुओं का स्पर्श हो सकेगा, अर्थात् रात्रि में हो तुम्हें सब वस्तुएँ मिल सकती हैं। तुम दोनों रात में आहार-विहार करने वाले होगे, दिन भर शयन करोगे,