पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६३६

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नवषष्टितमोऽध्यायः ॥१०६ ॥११० मातरं रक्षतं चैव धर्मश्चैवानुशिष्यताम् । इत्युक्त्या कश्यपः पुत्रौ तत्रैवान्तरधीयत गते पितरि तौ वीरौ निसर्गादेव दारुणौ | विपर्ययेण वर्तन्तौ किभक्षौ प्राणिहिंसको महाबलौ महासत्त्वौ महाकायौ दुरासदौ । मायाविनौ च दृश्यौ तावन्तर्धानगतावुभौ तौ कामरूपिणौ घोरौ विकृतिज्ञौ स्वभावतः । रूपानुरूप राहारैः प्रभवेतामुभावपि देवासुरानूषोश्चैव गन्धर्वान्किनरानपि । पिशाचांश्च मनुष्यांच पन्नगान्वक्षिणः पशून् भक्षार्थमपि लिप्सन्तौ सर्वतस्तौ निशाचरी | इन्द्रेण तु दरौ चैव धृतौ दत्त्वा त्ववध्यताम् यक्षस्तु न कदाचिद्वै निशीथे होकश्चिरम् | आहारं स परीप्सन्वै शब्देनानुचचार ह आससाद पिशाचौ हो जनुचण्डौ च तावुभौ । पिङ्गाक्षावूर्ध्वरोमाणौ वृत्ताक्षौ तु सुदारुणौ ॥११३ अत्तृङ्मांसवसाहारी पुरुषादौ महाबलौ | कन्याभ्यां सहितौ तौ तु ताभ्यां प्रियचिकीर्षया द्वे कन्ये कामरूपिण्यौ तदाचारे च ते शुभे | आहारार्थमटन्तौ तौ कन्याभ्यां सहितानुभौ ॥१११ ॥११२ ॥११४ ॥११५ ६१५ ॥१०६ ११०७ ॥१०८ रात में तुम दोनों बहुत बलवान् हो जाओगे और दिन भर सोते रहोगे । अव से माता को दोनो मिलकर रक्षा करो और धर्म को मर्यादा का पालन करो, धर्म का अनुशासन मानो ।' पुत्रो से ऐसी बातें कर कश्यप जी वहीं पर अन्तर्हित हो गये । १०३-१०६। पिता के चले जाने पर स्वभाव से ही दारुण प्रकृति वाले उन दोनों महावीरों ने प्राणियों की हिंसा में तत्पर रह कर कुत्सित एवं अखाद्य वस्तुओं का भोजन करना प्रारम्भ किया और पिता ने जिस प्रकार धर्म के अनुशासन में रहकर जीवन-यापन का उपदेश किया था ठीक उसके विपरीत आचरण करना प्रारम्भ किया । वे दोनों महाबलवान थे, महान् पराक्रमी थे, उनके शरीर विशाल थे, कठिनाई से उन्हें कोई अपने वश में कर सकता था, इतने मायावी थे कि एक क्षण यदि दिखाई पडते थे तो दूसरे ही क्षण अर्न्तधान भी हो जाते थे। स्वभाव से हो क्रूर प्रकृति वाले वे भीषण आकृति से युक्त तथा इच्छानुसार स्वरूप धारण करने वाले थे, अपने भीषण आकार के अनुरूप आहार भी उनका बहुत अधिक और भीपण था। देवताओं, मसुरों, ऋषियों, गन्धर्वो, किन्नरों, पिशाचो, मनुष्यों, सर्पों, पक्षियों और पशुओं को खाने के लिये वे जहाँ कहीं पाते थे पकड़ने की इच्छा करते थे। इस प्रकार एक बार उन निशाचरों ने खाने के लिये इन्द्र को पकड़ा और उनको न मारकर दो वरदान प्राप्त किया । १०७-१११३ कभी एक बार यक्ष खोजते समय रात में अकेले थोडी देर तक घूमता रहा। कुछ देर के बाद उसे शब्द सुनाई पड़े और वह उस शब्द के पीछे-पीछे चला। आगे चलकर उसने दो प्रचण्ड जानु वाले पिशाचों को देखा, जो पीली आँखों वाले थे, जिनके रोम ऊपर की ओर खड़े थे आखें गोलाकार थीं, और देखने में परम भयानक लग रहे थे । वे रक्त मांस और चर्बी का आहार करते थे. मनुष्यों को खा जाते थे। उन महाबलवानों के साथ दो कन्यायें थीं। वे कन्यायें इच्छानुसार रूप धारण करने वाली थीं और वे दोनों भी उन पिशाचों के समान आचरण करने वाली थीं किन्तु उनका स्वरूप मनोरमा था। उन दोनों कन्याओं के साथ वे पिशाच आहार के लिये रात मे घूम रहे