पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५६

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नवषष्टितमोऽध्यायः ६३५ ॥२६३ ॥२६४ ॥२६५ ॥२६६ ॥२६७ ग्राहाश्चतुविधा ज्ञेया तथाऽनुज्येष्ठका अपि । निष्कांश्च शिशुमारांश्च मीना व्यजनयत्प्रजाः वृत्ता कूर्मविकाराणि नैकानि जलचारिणाम् । तथा शङ्खविकाराणि जनयामास नैकशः गण्डूकानां विकाराणि अनुवृत्ता व्यजायत । ऐणेयानां विकाराणि शम्बूकानां तथैव च तथा शुक्तिविकाराणि वराटककृतानि च । तथा शङ्कविकाराणि परिवृत्ता व्यजायत कालकूट विकाराणि जलौकविहितानि च । इत्येष हि ऋषेवंशः पञ्च शाखाः प्रकीर्तिताः तिर्यग्घे तुकमाद्याहुर्बहुलं (?) वंशविस्तरम् | संस्वेदजविकाराणि यथा येभ्यो भवन्ति ह स्वस्तिपिकशरीरेभ्यो जायन्त्युत्पादका द्विजाः । मनुष्याः स्वेदमलजा उशना नाम जन्तवः [* तथा शिरसि चैले च यूकाः संस्वेदजाः स्मृताः । चन्द्रादित्याग्नितप्तायां पृश्चिव्यां संभवन्ति ये || तृणमेघप्रसिक्तायाः स्मृताः संस्वेदजन्तवः |] नानापिपीलिकगणाः कीटका बद्धपादका: शङ्खोपलविकाराणि कीलकाचारकाणि च । इत्येवमादिबहुलाः स्वेदजाः पार्थिवा गणाः ॥२६८ ॥२६६ ॥३०१ ॥३०२ और शिशुमार~~इन सबको 'मीना ( माता) ने उत्पन्न किया । वृत्ता ने जल में विचरण करनेवाले सभी प्रकार के कच्छपों (कछुओं) को तथा सभी प्रकार के शंखों को अगणित संख्या में उत्पन्न किया | अनुवृत्ता ने मेढ़कों के सभी भेदों एवं उपभेदों को तथा ऐणेय ( १ ) और सम्वूक (घोघा ) के सभी भेदोपभेदों को उत्पन्न किया । परिवृत्ता ने शुक्ति (सुतुही), वराटिका (कौड़ी) तथा शङ्ख के सभी भेदोपभेद को उत्पन्न किया | इनके अतिरिक्त कालकूट और जलौका (जोक) के सभी भेदों को भी उसने उत्पन्न किया। यह ऋषि के वंश का वर्णन किया जा चुका, जिसकी उपर्युक्त पाँच शाखायें कही गई हैं। इन निरर्थक योनि में उत्पन्न होनेवाले जन्तुओं का वंश विस्तार बहुत कहा जाता है । स्वेद से उत्पन्न होनेवाले जीवों के भेदोपभेदों की चर्चा कर रहा हूँ, जो जिनके स्वेद से जिस प्रकार उत्पन्न होते हैं । हे द्विजगण ! इन स्वेदज जन्तुओं के उत्पादक मनुष्य है ये स्वेदज जन्तु स्वस्तिपिक (?) शरीरों से उत्पन्न होते हैं। स्वेद और मल से उत्पन्न होनेवाले जन्तुगण उशना नाम से प्रसिद्ध हैं |२६८-२६६| शिर के बालों में तथा वस्त्र में स्वेद से उत्पन्न होनेवाले जन्तु यूका नाम से स्मरण किये जाते है । चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि से तपी हुई पृथ्वी में जो जन्तु उत्पन्न होते है, बादलों की वृष्टि से भीगे हुए तृणों में जो जन्तु उत्पन्न होते है, वे स्वेदज जन्तु कहे जाते है । विविध प्रकार के चीटीं जाति के जन्तु एवं कीट, जो श्रेणी बद्ध होकर चलते हैं, शंख और रत्नों के विविध प्रकार के जीव एवं कील का चारक (?) तथा इनके अतिरिक्त अन्यान्य बहुतेरे जन्तु पार्थिव ( पृथ्वी के ) स्वेदज कहे जाते है | ३०० - ३०२ | धाम ( धूप) आदि से तपे हुए

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क. ग. पुस्तकयोर्नास्ति ।

१ आनन्दाश्रम की प्रति में मीना पाठ यहाँ पर भी है, जो अशुद्ध प्रतीत होता है, क्योंकि पाँचों कन्याओं में मीना के बाद माता का नाम आता है।