पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५७

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६३६ वायुपुराणम् ॥३०४ ॥३०६ तथा धर्मादितप्ताभ्यस्त्वद्भ्यो वृष्टिभ्य एव च । नैका मृगशरीरेभ्यो जायन्ते जन्तवस्त्विमे ॥३०३ मोनकाः पिप्पला दंशास्तथा तित्तिरपुत्रिकाः | नीलचित्राश्च जायन्ते ह्यलका बहुविस्तराः जलजाः स्वेदजाश्चैव जायन्ते जन्तवस्त्विमे । काशतोयञ्ज (ज) काः कीटानलदा वषुपादकाः ॥३०५ सिंहला रोमलाश्चैव पिच्छलाः परिकीर्तिताः । इत्येवमादिहि गणो जलजः स्वेदजः स्मृतः सपिर्थ्यो भाषसुद्गानां जायन्ते क्रमशस्तथा । बिल्वजम्वाम्रपूगेभ्यः फलेभ्यश्चैव जन्तवः सुद्गेभ्य पनसेभ्यश्च तण्डुलेभ्यस्तथैव च । तथा कोटरशुष्केभ्यो निहितेभ्यो भवन्ति हि अन्येभ्योऽपि च जायन्ते न हि तेभ्यश्चिरं सदा | जन्तवस्तुरगादिभ्यो विषादिभ्यस्तथैव च बहून्यहानि निक्षिप्ते संभवन्ति च गोमये | जायन्ते कृमये विप्राः काष्ठेभ्यश्च घुणादयः क्रमा द्रुमाणां जायन्ते विविधा नोलनक्षिकाः । तथा शुष्कविकारेभ्यः पुत्रिकाः प्रभवन्ति घ कालिका शतिकेभ्यश्च सर्पा जायन्ति सर्वशः । संस्वेदजाश्च जायन्ते वृश्चिकाः शुष्कगोमयात् ॥३१२ ( * गोभ्यो हि महिपेभ्यश्च जायन्ते जन्तवः प्रभो । मत्स्यादयश्च विविधा अण्डकुक्षौ विशेषतः ॥३१३ ।। ३०७ ॥३०८ ॥३० ॥३१० ॥३११ - १ जल से वृष्टि से तथा मृगो (पशुओ) के शरीरो से ये अनेक जन्तु उत्पन्न होते है | मोनक, पिप्पल, दश (डॅसे) तित्तिरपुत्रक, नीलचित्र, अलर्क - प्रभृति जन्तुओं की संख्या बहुत अधिक है । य जन्तु जलज एवं स्वेदज कहे जाते हैं | ये जलज और स्वेदज जन्तु काशतोयञ्जक (?) नलद बहुपादक, सिहल, रोमल, पिच्छल आदि नामो से पुकारे जाते हैं । इनके अतिरिक्त अन्य बहुतेरे भी है । घृत से, उड़द से, मूंग से भी ये जन्तु उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वेल, जामुन, आम, सुपारी आदि फलो से भी ये जन्तु उत्पन्न होते है । मूंग, कटहल चावल, सूखे वक्षों के कोटर एव बहुत दिनो की रखी हुई वस्तुओं से भी ये कोट उत्पन्न होते है | ३०३-३०८। इनके अतिरिक्त अन्य बहुत पदार्थों से इन कीटो की उत्पत्ति होती है, किन्तु उनसे सर्वदा चिरकाल तक नही उत्पन्न होते है । घोड़े आदि पशुओ तथा विष आदि पदार्थों से भी ये क्षुद्र जन्तु उत्पन्न होते है | बहुत दिनो से रखे गये गोवर मे ये जन्तु उत्पन्न होते हैं । हे द्विजगण ! इसी प्रकार काष्ठादि वस्तुओ से घुन आदि क्षुद्र जन्तु उत्पन्न होते है | वृक्षो से विविध प्रकार की नीली मक्खियाँ उत्पन्न होती है, सब प्रकार की सूखी हुई वस्तुओ पुत्रिका उत्पन्न होती है, शतिको ( ? ) से सभी प्रकार के वर्षाकालीन सर्प उत्पन्न होते हैं। सूखे गोबरी से विच्छुओं की उत्पत्ति होती है ।३०६-३१२। हे प्रभो ! इसी प्रकार गोओ और भैंसो के शरीर से भी स्वेदज जन्तुओं की उत्पत्ति होती है | मत्स्य आदि विविध जन्तु अण्डे से उत्पन्न होते है | चैवीरिक, गोजा एव अन्यान्य प्रकार

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो घ पुस्तके नास्ति |