पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

नवषष्टितमोऽध्यायः ६३७ ॥३१६ ॥३१७ चैवीरिकाश्च जायन्ते तथा गोजाकुलानि च । तथाऽन्यानि च सूक्ष्माणि जलौकादीनि जातयः ॥३१४ [+ कपोतकुररादिभ्यः सूक्ष्मा यूकास्तथैव च | X तथैवान्येऽपि संख्याता अष्टापदकुलीरकाः] ॥३१५ मक्षिकाणां विकाराणि जायन्ते जातयोऽपरे ।) प्रायेण तु वसन्त्यस्मिन्नुच्छ्रिष्टोदक कर्दमे मशकानां विकाराणि भ्रमराणां तथैव च | तृणेभ्यः समजायन्त पुत्रिकाः पुत्रसप्तकाः मणिच्छेदास्तथा व्यालाः पोतजाः परिकीर्तिताः । शतवेरिविकाराणि करीषेभ्यो भवन्ति हि ॥३१८ एवमादिरसंख्यातो गणः संस्वेदजो मया | समासाभिहितो ह्येष प्रावकर्मवशजः स्मृतः तथाऽन्ये नैर्ऋता सत्त्वास्ते स्मृता उपसर्गजाः । पूतास्तु योनिजाः केचित्केचिदौत्पत्तिकाः स्मृताः ॥ प्रायेण देवाः सर्वे वै विज्ञेया ह्युपपत्तिजाः । केचित्तु योनिज़ा देवाः केचिदेवानिमित्ततः तुलालाघश्च कोलश्च शिवा कन्या तथैव च | अपत्यं सरमायास्तु गणा वै सरमादयः श्यामश्च शबलश्चैव अर्जुनो हरितस्तथा । कृष्णो धूम्रारुणश्चैव तुलालाबूश्च कद्रुकाः ॥३१६ ॥३२१ ॥३२२ ॥३२३ { के जोक आदि क्षुद्र जल जन्तुओं की उत्पत्ति भी अण्डों से होती है। इसी प्रकार कबूतर, कुरर आदि पक्षी अण्डों से उत्पन्न होते हैं । अति सूक्ष्म यूक (जू) आदि जन्तु भी अण्डो से उत्पन्न होते है । उसी प्रकार आठ पैरों वाले कुलीरक (केकड़ा) भी अडे से उत्पन्न होनेवाले जन्तुओ में गिने गये है | ३१३-३१५। सभी प्रकार की मक्खियों की जातियों में जितने अन्यान्य भेदोपभेद पाये जाते है, वे भी अंडों से उत्पन्न होते है । कुछ मक्खियाँ उच्छिष्ट वस्तुओं पर, जल में तथा कीचड़ में निवास करती है। सभी प्रकार के मशको के भदोपभेद, भ्रमरों के भेदोपभेद, पुत्रिका तथा पुत्र सप्तक आदि क्षुद्र जन्तु तृणो से उत्पन्न होते है | मणिच्छेद तथा व्याल ये पोतज नाम से प्रसिद्ध है (१) शतवेरि के जितने भेद्रोपभेद है व करीषो (करपे) से उत्पन्न होते है । इम प्रकार के अन्यान्य स्वेदज क्षुद्र जन्तुओं की संख्या अगणित है। केवल संक्षेप मे मैने इनका वर्णन किया है, ये सब जन्म प्राक्तन कर्म के अधीन कहे जाते है | ३१६-३१९ | इन सबों के अतिरिक्त जो नैॠत प्राण' है, व उपसर्गज कहे जाते है। कोई ज़न्म ग्रहण करनेवाले प्रागी पूत और कोई औत्पत्तिक कहे जाते है । प्रायः सभी देवगणों को औत्पत्तिक जानना चाहिये । कुछ देवता योनिजात है और कुछ बिना किसी कारण के ही उत्पन्न होनेवाले है | सरमा के तुलालाघ, और कोल ये दो पुत्र और शिवा नाम को तीसरी कन्या हुई । ये सरमादिगण के नाम से प्रसिद्ध हैं । श्याम, शबल, अर्जुन, हरित, कृष्ण, धूम्र, अरुण और तूलालावू ये कद्रू को सन्तनियाँ है । सुरसा ने एक सौ शिरोमृत सर्पों को उत्पन्न किया । सर्पों का राजा तक्षक और नागो का राजा वामुकि है । ये + धनुरिच ह्रान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति । X इदमधं नास्ति ङ. पुस्तके |