पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६८५

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६६४ वायुपुराणम् स शापशेषाद्रुद्राण्या अन्तर्गर्भो हुताशनः । बहून्वर्षगणान्गर्भ धारयामास वै द्विजाः स गङ्गामुपगम्याऽऽह श्रूयतां सरिदुत्तमे । सुमहान्परिखेदो मे गर्भधारणकारणात् मद्धितार्थमिमं गर्भमतो धारय निम्नगे | सत्प्रसादाच्च खेदो वै मन्दस्तव भविष्यति तथेत्युक्त्वा तदा सा तु संग्रहृष्टा महानदी । तं गर्भ धारयामास दह्यमानेन तेजसा साऽपि कृच्छ्रण महता खिद्यमाना महानदी। फालं प्रकृष्टं सुमहद्गर्भधारणतत्परा तथा परिगतं गर्भं कुक्षौ हिमवतः शुभे । शुभं शरवणं नाम चित्रं पुष्पितवादपम् ॥ तत्र तं व्यसृजद्ग नं दीप्यमानमिवानलम् रुद्राग्निगङ्गातनयस्तत्र जातोऽरुणप्रभः | आदित्यशतसंकाशो महातेजाः प्रतापवान् तस्मिञ्जाते महाभागे कुमारे जावीसुते । विमानयानंराफाशं पतत्रिभिरिवावृतम् देवदुन्दुभयो नेदुराकाशे मधुरस्वराः । मुमुचुः पुष्पवर्षं च खेचराः सिद्धचारणाः जपुर्गन्धर्वमुख्याश्च सर्वशस्तत्र तत्र ह | यक्षा विद्याधराः सिद्धाः किनराश्चैव सर्वशः ॥२७ ॥२८ ||२६ ||३० ॥३१ ॥३२ ||३३ ॥३४ ॥३५ ॥३६ ऋषिवृन्द ! रुद्राणी उमा के रोपज शाप के कारण हुताशन को वह गर्भ धारण करना पड़ा और उस गर्भ को उसने बहुत वर्षो तक वहन किया । बहुत दिनों के बाद गंगा के तट पर आकर अग्नि ने निवेदन किया, हे उत्तम सरिते ! मेरी यह प्रार्थना श्रवण करो। इस गर्भ भार के वहन करने में मुझे महान् खेद हो रहा है, हे निम्नगे ! मेरे लिए तुम इस गभ को आज से धारण कर लो, मेरे आशीर्वाद से तुम्हे इसके वहन करने मे बहुत अल्पखेद होगा |२७-२६। महानदी गंगा ने अग्नि की विनयपूर्ण वार्ण बातें सुनकर स्वीकार कर लिया, और बड़े आ से उस गर्भ को धारण किया, अपने तेज से जलते हुए उस गर्भ को वहन करने में वे महानदी भी बहुत परेशान हुई, फिर भी बहुत दिनो तक तत्परता के साथ अनेक कठिनाइयों की उपेक्षा कर वे गर्भ को धारण किये रही | हिमवान् पर्वत के मनोहर कुक्षि प्रदेश (घाटी) में शरवण नामक एक विचित्र सुन्दर वन था जिसमे वृक्ष खूव फूले हुए थे, वही पर जाकर गंगा ने अनुपम तेज से जलते हुए अग्नि को भांति उस गर्भ का विमोचन किया ।३०-३२॥ रुद्र, अग्नि मोर गंगा का वह शिशु अरुण के समान कान्तिमान हुआ, सैकड़ों सूर्य के समान् तेजस्वी और प्रतापी था । जाह्नवी के गर्भ से उस कुमार के समुत्पन्न होने पर सारा आकाशमण्डल देवताओं के सुन्दर विमानो और यानो से इस प्रकार आवृत हो गया मानो पक्षियों के समूह घेरे हुए हों | ३३-३४ | देवगण आकाश मण्डल के मधुरस्वर से दुन्दुभि वजाने लगे । आकाश में उड़नेवाले सिद्ध और चारणों के वृन्द पुष्पो की वृष्टि करने लगे । चारों ओर से मुख्य मुख्य गन्धर्म लोग गान करने लगे, विद्याधरों, सिद्धो, तथा किन्नरों के समूह सम्मिलित होकर उत्सव मनाने लगे। सहस्रों विशालकाय नाग एवं पक्षियों के प्रमुख गण उस शंकरात्म