पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७००

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पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः सौभाग्यमुत्तमं लोके मधुके समुदाहृतम् ।) फल्गुपात्रे च कुर्वाणः सर्वान्कामानवाप्नुयात् परा द्युतिरथो कर्तुः प्राकाश्यं च विशेषतः । विल्वे लक्ष्मीस्तथा मेधा नित्यमायुष्यमेव च क्षेत्रारामतडागेषु सर्वसस्येषु चैव हि । वर्षेदजस्रं पर्जन्यो वेणुपात्रेषु कुर्वतः एतेष्वेव सुपात्रेषु ये चैवाऽऽग्रयणं दधुः | सकृदप्यत्र यज्ञानां सर्वेषां फलमुच्यते पितृभ्यो यस्तु माल्यानि सुगन्धीनि च सर्वशः । सदा दद्याच्छ्रिया युक्तः स विभाति दिवाकरः गुग्गुलादींस्तथा धूपान्पितृभ्यो यः प्रयच्छति । संयुक्तान्मधुर्सापिर्थ्यो सोऽश्वमेधफलं लभेत् धूपं गन्धगुणोपेतं कान्तं पितृपरायणम् | लभते स्त्रोष्वपत्यानि इह चामुत्र चोभयोः ॥ दद्यादेव पितृभ्यस्तु नित्यमेव ह्यतन्द्रितः दोपं पितृभ्यः प्रयतः सदा वस्तु प्रयच्छति । स लोकेऽप्रतिभं चक्षुः सदा च लभते शुभम् तेजसा यशसा चैव कान्त्या चैव वलेन च | भुवि प्रकाशो भवति भ्राजते च त्रिविष्टपे || अप्सरोभिः परिवृतो विमानाग्रे स मोदते ६७६ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ ।।७ ||5 11E ॥१० ॥११ के पत्तों से निर्मित पात्र में कृत वलिकमं इस लोक में उत्तम सौभाग्य प्रदान करता कहा जाता है । फल्गु १ (कठूमर) के पत्तों से बने हुए पात्र श्राद्ध करने से सभी मनोरथ सफल होते हैं, एवं परमकान्ति तथा प्रकाश की प्राप्ति श्राद्धकर्ता को होती है । विश्व के पात्र से लक्ष्मी, धारणाशक्ति, तथा दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।२०४१ वेणु ( वेणु ) के पात्र में श्राद्ध करनेवाले के खेत, वगीचे और जलाशयों में मेघ नित्य वृष्टि करता है । इन उपर्युक्त पात्रों में जो लोग श्राद्ध के अवसर पर पितरों को एक बार भो बलि देते हैं वे सम्पूर्ण यज्ञों का फल प्राप्त करते हैं । जो व्यक्ति पितरों को भक्तिपूर्वक सुन्दर पुष्प माला सुगन्धित द्रव्य आदि नित्य देता है वह श्री सम्पन्न होकर सूर्य के समान तेजस्वी होकर शोभा पाता है १५-७॥ गुग्गुल आदि से धूप द्रव्यों को मधु और घृत के समेत जो पितरों के उद्देश्य से समर्पित करता है, वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करना है । पितरों के उद्देश्य से जो मनोहर सुगंधियुक्त धूप दान करता है वह अपनी स्त्री में इस लोक तथा परलोक में उत्तम सन्तान प्राप्त करता है | अतः विना आलस्य किये नित्य पितरों को धूपदान करना चाहिये । जो व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक सर्वदा पितरों के उद्देश्य से दीपदान करता है । वह लोक में परम सुन्दर अनुपम नेत्र प्राप्त करता है |८-१०१ अपने तेज, यश, कान्ति, तथा वल से पृथ्वीतल में विख्यात होता है और अन्तकाल १. कठूमर | इसके पेड़ बहुत बड़े-बड़े होते हैं । इस पर फूल नही आते । इसकी डालियों से फल पैदा होते हैं, इसके पत्ते गूलर के पत्तो से बड़े होते हैं। पत्तों के स्पर्श करने से हाथों में खुजली होने लगती है । पत्तो से दूध निकलता है ।