पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७०६

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पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः अश्वमेधफलेनैव तत्स्मृत मन्त्रिपूर्वकम् । क्रिया: "सर्वा यथोद्दिष्टाः प्रयत्नेन समाचरेत् बहुव्यत्यमेवाग्नी सुमि विशेषतर्ग विघूमे लेलिहाने व होतव्यंक्रसिद्धये cell सधूमे चतराने जमानो भवेदः सोऽत्र इतिक आध ल्वालिङ्गच सर्वशःज्वलाधू भोपसव्यवसातुः हिर्न सिद्धये विशेष भूमि विवाहते व तः विद्यापराभव अचिष्मान्पिण्डितशिख आपकञ्चनसंभवः। स्तिंगधः प्रदक्षिणश्चैव-वह्निः स्यात्कार्यसिद्धये ॥६ नरनारीगणेभ्यश्च पूजां प्राप्नोति शाश्वतीम् । अक्षयाः पूजितास्तेंतः भवन्ति पितरोऽव्ययान जी ६६ स्थायुदुम्बरपात्राणि कलानि समिधस्तथा ॥ श्रीद्धे प्रातिपवित्राणि मेध्या नीति, विशेषतः॥६७ पवित्रं वा द्विजश्रेष्ठ शुद्धये जन्मकर्मसु | पात्रेषु फलमुद्दिष्टं यन्मया श्राद्धकर्मणि तदेव कृत्स्नं विज्ञेष्ठं समिट्स जो प्रथाक्रनम् कृत्वा समाहितं चित्तमग्नये वै करोम्यहम् अनुज्ञातः कुरुष्वेति तथैव द्विजसत्तमैः । पत्नीमादाय पुत्रांश्च जुहुयीद्धव्यवाहनम् ॥६८ ॥६६ ।।७० ESTER बिना प्रस्तुलित नोंवाली रूखी अग्नि में हार चारों ओर +37) PIF (THE FR ●REE वैसी ही प्रयत्नपूर्वक करनी चाहिये । अग्नि में विशेषतया खूब प्रज्वलित हो जाने पर अधिक हवि डालनी चाहिये, कर्मसिद्धि के लिये दहकती हुई। निर्धूम अग्नि में हाथ डालेनी चाहिये २६०६१जी (अनमोन धूमयुक्त अथयो करता कामाची आराम से व्याप्त अनि सिद्धिाक लिये नहीं है वह अन्धा होता है ऐसा हमने सुना है। इस यो से चिनगारियोंवाली, 1572 SPA É है. ६३१ जो भक्ति दुर्गन्धियो से भरी, नीली, विशेपतग्री काली है और जिसके प्रज्वलित होने पर की फट ज उसमें हवन करने से पराभव जानना चाहिये (६४) किरणों से नमोभित, ज्वालाओं को एक पिण्डरूप में प्रकट करनेवाली, पत और सुवर्ण से उत्पन्न होने वाला में समिpि Pre होनेवाली (पोलो) स्निग्ध और मुदक्षिणा करती हुई सी अनि सिद्धि देनेवाली है १६५। यह अस्ति इस लोक में नर नारी दोनों समुदायों से संवृंदा से प्रचलित पूजा प्राप्त करती है । उनके द्वारा पूजित होकर वितरगण अक्षय एवं अनन्त तुष्टि प्राप्त करते हैं।"श्रौद्धकर्म में स्थाली, उदुम्बर के पात्र (गूलर के पत्तों से बने हुये पात्र) उदुम्बर के फल और उसी की समिधाचे दात विशेष पति का पवित्र एवं पुण्यप्रद मानी गयी हैं । हे द्विश्रेष्ठ ! श्राद्धकर्म में जिन-जिन पात्रों में जो जो फल मैंने बतलाये है वे सब जातकर्म में शुद्धि के अवसर - भीवित एवं फलदायी होते हैं। समिधा के लिये श्री क्रमशः यही नियम जानना चाहिये । श्राद्धकर्ता चित्त को सावधान करके ब्राह्मणों से यह निवेदन करें कि मै अग्नि में पितरों के उद्देश्य से हवन कर रहा हूँ । श्रेष्ठ ब्राह्मणों द्वारा 'करो' ऐसी आज्ञा प्राप्त हो जाने पर अपनी पत्नी और पुत्रों को साथ लेकर अग्नि में हवन करें |६६-७० । समान (?) प्लक्ष (पाकड़) न्यग्रोध, (वरगद ) अश्वत्थ (पीपल) ET IPIPPE PEP - 152