पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५८

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७३७ द्वयशीतितमोऽध्यायः ॥८ ॥ चित्रायां चैव यः कुर्यात्पश्येद्रूपवतः सुतान् । स्वातिना चैव यः कुर्याद्विद्वाल्लाभमवाप्नुयात् पुत्रार्थं तु विशाखासु श्राद्धमीहेत मानवः । अनुराधासु कुर्वाणो नरश्चक्रं प्रवर्तयेत् आधिपत्यं लभेच्छ्र ष्ठ्यं ज्येष्ठायां सततं तु यः । सूलेनाssरोग्यमिच्छन्ति आषाढासु महद्यशः ॥१० आपाढाभिश्चोत्तराभिर्वीतशोको भवेन्नरः | श्रवणेन तु लोकेषु प्राप्नुयात्परमां गतिम् राजभाम्बे धनिष्ठासु प्राप्नुयाद्विपुलं धनम् । श्राद्धं त्वभिजिता कुर्वन्वेदान्साङ्गानवाप्नुयात् नक्षत्रे वारणे कुर्वन्भिक्सिद्धिमवाप्नुयात् । पूर्व प्रोष्ठपदे कुर्वन्विन्दतेऽजाविक फलम् उत्तरात्वनतिक्रम्य विन्देद्गाश्च सहस्रशः । बहुरूपकृतं द्रव्यं विन्देत्कुर्वस्तु रेवतीम् ॥ अश्वांश्वाश्विनीयुक्तो भरण्यामायुरुत्तमम् ॥ १४ इमं श्राद्धविधि कुर्दशशबिन्दुर्महीमिमाम् । * कृत्स्नां तु लेभे सकृत्स्मां लब्ध्वा च प्रशशंस तम् ॥१५ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते नक्षत्रविशेषे श्राद्धफलवर्णनं नाम द्व्यशीतितमोऽध्यायः ॥५२॥

  • एतदधंस्थान इदमर्धम् - 'कृत्स्नां सलभतोत्कृष्टा लब्ध्वा च प्रशशास ताम् इति' ङ् पुस्तके |

फा०- ॥१२ ॥१३ नक्षत्र में श्राद्ध करता है वह रूपवान पुत्रों को देखता ( प्राप्त करता है | जो विज्ञान पुरुष स्वाती नक्षत्र में श्राद्ध करता है, वह लाभ प्राप्त करता है |७-८। मनुष्य को पुत्र प्राप्ति के लिये विशाखा नक्षत्र में श्राद्ध करने की अभिलाषा करनी चाहिए । अनुराधा में श्राद्ध करनेवाला मनुष्य राज्य का विस्तार करता है । जो सर्वदा ज्येष्ठा नक्षत्र में श्राद्ध करता है वह उत्तम आधिपत्य प्राप्त करता है । मूलनक्षत्र से लोग अरोग्य की इच्छा करते है, आपाड़ा में महान् यश प्राप्त करते हैं, उत्तराषाढ़ नक्षत्र में श्राद्ध करने वाला मनुष्य शोक रहित होता है । श्रवण नक्षत्र में श्राद्ध करने से सभी लोकों में परम गति प्राप्त होती है ।९-११। घनिष्ठा नक्षत्र में श्राद्ध करनेवाला राज्य और विपुल धन प्राप्त करता है । अभिजित् नक्षत्र मे श्राद्ध करनेवाला अंगों समेत समस्त वेदों का अधिकारी होता है । शतभिष् नक्षत्र में श्राद्ध करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती है। पूर्व भाद्रपद मे श्राद्ध करनेवाला अजाविक (?) फल प्राप्त करता है । १२-१३। उत्तरा भाद्रपद मे श्राद्ध कर्ता श्राद्ध करने के फलस्वरूप सहस्रो गौंएं प्राप्त करता है। रेवती मे श्राद्ध करनेवाला बहुत सा द्रव्य प्राप्त करता है । इसी प्रकार अश्विनी में अश्व और भरणी में उत्तम आयु प्राप्त करता है | इस श्राद्ध विधि का विधिवत् पालन कर शशविन्दु ने इस समस्त पृथ्वी को प्राप्त किया था और उसकी प्रसंशा की थी १४-१५। श्री वायुमहापुराण मे नक्षत्रविशेष मे श्राद्धफल वर्णन नामक वयासोर्वा अध्याय समाप्त ॥५२॥