पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६९

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वायुपुराणम् महारोगावसायस्तु स यः संयतमानसः | वेदाश्रमान्मुक्तचित्तः कुम्भीकानधिगच्छत्ति || जिह्वाछेदं स्तेनमेत्य प्राप्नुयुस्तेन चैव ह सीदन्ति ते सागरे लोष्टभूता योगद्विषः स्थास्यन्ते यावदुर्वी ॥ तस्माच्छ्राद्धे धर्म उद्दिष्ट एष नित्यं कार्यः श्रद्दधानेन पुंसा परिवादो न कर्तव्यो योगिनां च विशेषतः | परवादात्कृमिर्भूत्वा तत्रैव परिवर्तते योगं परिवदेद्यस्तु ध्वानिनां मोक्षकारणम् । स गच्छन्तरकं घोरं श्रोता यश्च न संशयः आवृतं तमसा सर्व परमं घोरदर्शनम् | योगोश्वरपरीवादान्निश्चयं याति मानवः योगेश्वराणामाकोशं शृणुयायो यतात्मनाम् । स हि कालं चिरं मज्जेत्कुम्भीपाके न संशयः मनसा कर्मणा वाचा द्वेषं योगिषु वर्जयेत् । प्रेत्यान्यं तत्फलं भुङ्क्ते इह चैव न संशयः न पारगो विन्दति पारमात्मनस्त्रिलोकमध्ये चरति स्वकर्मभिः | ॠचो यजुः साम तदङ्गपारगो विकारमेवं धनवाप्य सीदति ७४८ ॥८ ॥६० ॥६१ ॥६२ ||६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ दृष्टि से देखकर उनमें अश्रद्धा करता है। वह नास्तिक अन्धकार से चारों ओर घिर कर घोर नरक में गिरता है । जो मन को संयत रखकर श्राद्धकर्म सम्पन्न करते हैं, उनके भीपण रोगो का विनाश होता है। देदो मे वर्णित आश्रमो से मुक्त होकर मन माने ढंग से जीवन छेदन एवं चौर्य कर्म को वे प्राप्त होते है तब तक निवास करते है जब तक इस पृथ्वी की अवस्थिति रहती है। इसलिए श्राद्ध श्राद्ध नियमो का श्रद्धापूर्वक मनुष्यों को सर्वदा पालन करना चाहिये ह विशेषतया योगियों की निन्दा तो नही हो करनी चाहिये, योगियों को निन्दा करने से वही पर कृमि होकर जन्म धारण करना पड़ता है। ध्यान परायण योगियों के अन्यतम लक्ष्य मोक्ष के मुख्य साधन योग को जो निन्दा करता है, वह घोर नरक में जाता है, उस निन्दा को सुनने वाला भी घोर नरक में जाता है - इसमें सन्देह नही |६१-६२। योग परायण योगेश्वरी की निन्दा करने से मनुष्य चारो ओर से अन्धकार से आच्छन्न, परम घोर दिखाई पड़ने वाले नरक में निश्चय हो जाता है । आत्मा को वश में रखने वाले योगेश्वरी को निन्दा जो मनुष्य सुनता है, वह चिरकाल पर्यन्त कुम्भीपाक नरक में निवास करता है - इसमें सन्देह नहो । योगियों के प्रति द्वेष की भावना वाचा, कर्मणा - सर्वथा वर्जित रखनो वाहिये । इस सत्कर्म का फल वह दूसरे जन्म में भोगता है, और इस जन्म ने भी भोगता है - इसमे सन्देह नही |६३-६५१ योग मार्ग के पारंगत आत्मा के पार को नही प्राप्त होते (१) अपने कर्म के अनुसार वे तीनो लोकों में विचरण करते हैं । ऋक्, यजु और सामवेद तथा इनके समस्त अंगो के पारंगत इस प्रकार विकारो को न प्राप्त होकर आनन्द का अनुभव करते भनसा, यापन करने वाले कुम्भीक नरक में जाते हैं । जिल्ला के जो योग के द्वेप करने वाले है, वे समुद्र में ढेला होकर ऊपर वतलाये गये इन