पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३१

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८१० वायुपुराणम् तं ब्रह्मवादिनं दान्तं धर्मज्ञं सत्यवादिनम् | उर्वशी वरयामास हित्वा मानं यशस्विनो तया सहावसद्राजा दश वर्षाणि चाष्ट च । सप्त पट् सप्त चाष्टौ च दश चाप्टौ च वीर्यवान् वने चैत्ररथे रम्ये तथा मन्दाकिनीतटे । अलकायां विशालायां नन्दने च वनोत्तमे गन्धमादनपादेषु मेरुशृङ्गे नगोत्तमे | उत्तरांश्च कुरून्प्राप्य कलापग्राममेव च एतेषु वनमुख्येषु सुरैराचरितेषु च । उर्वश्या सहितो राजा रेमे परमया मुदा ● ऋषय ऊचु: गन्धर्वी चोर्वशी देवो राजानं मानुषं कथम् | देवानुत्सृज्य संप्राप्ता तन्नो ब्रूहि बहुश्रुत सूत उवाच ब्रह्मशापाभिभूता सा मानुषं समुपस्थिता । ऐलं तु तं वरारोहा समयेन व्यवस्थिता आत्मनः शापमोक्षार्थं नियमं सा चकार तु । अनग्नदर्शनं चैव अकामात्सह मैथुनम् द्वौ मेषौ शयनाभ्यासे स तावद्वयवतिष्ठते । घृतमात्रं तथाऽऽहारः कालमेकं तु पार्थिव ।।४ ॥५ ॥६ ॥७ ॥८ 118 ॥१० ॥११ ॥१२ अनुपम पुत्र था, सुन्दरता में वह वेजोड़ था ! उस ब्रह्मवादी, क्षमाशील, दानपरायण, धर्मज्ञ, एवं सत्यभाषो पुरूरवा को अपने रूप के लिये परम यश प्राप्त करनेवाली उर्वशी ने अपना मान छोड़कर पतिरूप में वरण किया |३ - ४॥ उस उर्वशी के साथ परम बलवान् राजा पुरूरवा ने दस आठ, सात, छ, सात, आठ, दस आठ, कुल मिलाकर चौंसठ वर्षो तक सुखपूर्वक निवास किया | कभी मनोरम चैत्ररथ नामक वन में, कभी मन्दाकिनो के रमणीय तटवर्ती प्रान्त में, कभी अलकापुरी में, कभी विशालापुरी में सर्वश्रेष्ठ वन मे, कभी गन्धमादन पर्यंत के शिखरों पर, कभी नगराजसुमेरु की चोटियो पर, कभी उत्तर कुरु प्रदेश में, कभी कलाप ग्राम में इन प्रमुख बनो एवं देवताओं की क्रीड़ा भूमियों में वह राजा पुरूरवा परम आनन्द समेत उवंशी के साथ विहार करता रहा १५-८॥ ऋषियों ने पूछा- बहुश्रुत सूतजी ! गन्धर्व की कन्या दिव्यगुणयुक्त उषंशी ने मनुष्य पुत्र राजा पुरूरवा को, समस्त देवताओ को छोड़कर, क्यों पतिरूप में वरण किया – इसे हमे बतलाइये ॥९॥ सूत बोले- ऋषिवृन्द ! गन्धर्वपुत्री सुन्दरी उर्वशी ने ब्रह्मशाप के कारण मनुष्य को पति- रूप मे वरण किया था, उसने प्रतिज्ञा करके इला पुत्र राजा पुरुरवा के साथ रहने की व्यवस्था की थो । शाप से मुक्ति पाने के लिए उसने नियम निश्चित किया था। उसने कहा था, "हे राजन् ! मैथुन के अवसर को छोड़कर विना कामासक्ति के किसी भी समय में आपको नंगा नहीं देखूंगी, हमारी शय्या के समीप