पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकनवतितमोऽध्याया यद्येष समयो राजन्यावत्कालश्च ते दृढम् । तावत्कालं तु वत्स्यामि एष नः समयः कृतः तस्यास्तं समयं सर्वं स राजा पर्यपालयत् । एवं सा चावसत्तस्मिन्पुरूरवसि भामिनी वर्षाण्यथ चतुःषठं तद्भक्तया शापमोहिता | उर्वशी मानुषे प्राप्ता गन्धर्वाश्चिन्तयान्विताः गन्धर्वा ऊचुः चिन्तयध्वं महाभागा यथा सा तु वराङ्गना । आगच्छेत्तु पुनर्देवानुर्वशी स्वर्गभूषणा ततो विश्वावसुर्नाम तत्राऽऽह वदतां वरः । तथा तु समयस्तत्र क्रियमाणो मतोऽनघः समयव्युत्क्रमात्सा वै राजानं त्यक्ष्यते यथा । तदहं वच्मि वः सर्वं यथा त्यक्ष्यति सा नृपम् ससहायो गमिष्यामि युष्माकं कार्यसिद्धये । एवमुक्त्वा गतस्तत्र प्रतिष्ठानं महायशाः स निशायामथाssगम्य मेषमेकं जहार वै । मातृवद्वर्तते सा तु मेषयोश्चारुहासिनी गन्धर्वागमनं ज्ञात्वा शयनस्था यशस्विनी | राजानमब्रवीत्सा तु पुत्रो मेऽहियतेति वै ८११ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ दो मेढ़े सवंदा बंधे रहेंगे, और केवल एक समय घृतं मात्र का अहार में करूँगी । हे राजन् ! जब तक हमारे इन नियमों को दृढ़तापूर्वक आप अक्षुण्ण पालन करते रहेगे, तब तक मैं निश्चय आपके साथ रहूँगी, यही हमारी प्रतिज्ञा है।" राजा पुरूरवा ने उर्वशी की इस प्रतिज्ञा का जब तक अक्षरश: पालन किया, तब तक सुन्दरी उर्वशी उसके साथ निवास करती रही । इस प्रकार ब्रह्मशाप से मोहित होकर उर्वशी चौंसठ वर्षों तक भक्ति पूर्वक मनुष्य योनि में उत्पन्न होनेवाले राजा पुरुरवा के साथ रही, उधर गन्धर्व लोग उसके वियोग से परम चिन्तित थे |१०-१५॥ गन्धर्व गण बोले—'हे महाभाग्यशालियों ! स्वर्ग को विभूषित करनेवाली परम सुन्दरी उर्वशी जिस प्रकार देवताओं को पुनः प्राप्त हो - इस बात की चिन्ता करते जाइये ।" उस समय बोलने में सब से प्रवीण विश्वास नामक गन्धवं बोला, निष्पाप ! गन्धवंगण ! मेरी ऐसी धारणा है कि उर्वशी ने अवश्य कोई प्रतिज्ञा उस राजा के साथ की होगी, जिसके संग निवास कर रही है । उस प्रतिज्ञा के टूट जाने वह जिस प्रकार उस राजा को छोड़ देगी, वह उपाय तुम लोगों को मैं बतला रहा हूँ। तुम लोगों की कार्य सिद्धि के लिये में सहायक के साथ उसके पास जा रहा हूँ । महान् यशस्वी विश्वासु ने गन्धर्वो से ऐसी बातें करने के उपरान्त प्रतिष्ठानपुर की ओर प्रस्थान किया ।१६-१६। रात के समय उसने शयनागार में प्रवेश- कर एक मेढ़े को चुरा लिया, उन दोनों मेढों पर सुन्दर हँसनेवाली उर्वशी माता के समान स्नेह रखती थी । शय्या पर लेटे लेटे ही यशस्विनी उर्वशी को गन्धर्षो के आने का वृत्तान्त विदित हो गया और वह वहीं से राजा से केवल इतना बोली- मेरा एक पुत्र चुराया जा रहा है । उर्वशी इस बात को जिस समय राजा से कह