पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३६

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एकनवतितमोऽध्याया ॥५१ ॥५२ ॥५३ ॥५५ ॥५६ राज्यं स कारयामास प्रयागे पृथिवीपतिः । उत्तरे यामुने तीरे प्रतिष्ठाने महायशाः तस्य पुत्रा बभूवुहि षडिन्द्रोपसतेजसः । गन्धर्वलोके विदिता आयुर्धीमानमावसुः विश्वायुश्च शतायुश्च गतायुश्चोर्वशीसुताः | अमावसोस्तु वै जातो भीमो राजाऽथ विश्वजित् श्रीमान्भोमस्य दायादो राजाऽऽसोत्काञ्चनप्रभः । विद्वांस्तु काञ्चनस्यापि सुहोत्रोऽभून्महाबलः ॥५४ सुहोत्रस्याभवज्जह्नुः कौशिकागर्भसंभवः । प्रतिगत्य ततो गङ्गा वितते यज्ञकर्मणि प्लावयामास तं देशं भाविनोऽर्थस्य दर्शनात् । गङ्गया प्लावितं दृष्ट्वा यज्ञवाटं समन्ततः सौहोत्रिर्वरदः क्रुद्धो गङ्गां संरक्तलोचनः । अस्य गङ्गेऽवलेपस्य सद्यः फलमवाप्नुहि एतत्ते विफलं सर्वं पीतमम्भः करोम्यहम् । राजर्षिणा ततः पीतां गङ्गां दृष्ट्वा सुरर्षयः उपनिन्युर्महाभागा दुहितृत्वेन जाह्नवीम् | यौवनाश्वस्य पौत्रों तु कावेरों जहनुरावहत् युवनाश्वस्य शापेन गङ्गां येन विनिर्ममे | कावेरीं सरितां श्रेष्ठां जहनुभार्यामनिन्दिताम् जह, नुश्च दयितं पुत्रं सुहोत्रं नाम धार्मिकम् | कावेर्या जनयामास अजकस्तस्य चाऽऽत्मजः ॥५७ ॥५८ ॥५६ ॥६० ॥६१ ८१५ यशस्वी की राजधानी यमुना के पवित्र उत्तर तट पर अवस्थित प्रतिष्ठान पुर में थी |४८-५१। उस राजा पुरूरवा के इन्द्र के समान महान् तेजस्वी छः पुत्र थे, गन्धर्वो के लोक मे इनकी बड़ी प्रतिष्ठा और ख्याति थी। उनके नाम थे आयु, श्रीमान्, अमावसु, विश्वायु, शतायु और गतायु- ये सब उवंशी के पुत्र थे । अमावसु के पुत्र राजा भीमं हुए, जो विश्व विजयी थे । उस राजा भीम का उत्तराधिकारी परम कन्तिमान् राजा काञ्चनप्रभ हुआ । काञ्चनप्रभ का पुत्र महाबलवान् एवं परम विद्वान् राजा सुहोत्र हुआ |५२-५४। राजा सुहोत्र के पुत्र जहनु हुए, ये राजा जहनु कौशिका के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । इन राजा जहनु ने एक बार पृथ्वी पर यज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ किया था, समस्त यज्ञ सामग्रियाँ पृथ्वी पर विस्तृत थीं, भावी वश गंगा की धारा ने उस प्रान्त को अपने जल से प्लावित कर दिया | चारों ओर से यज्ञ भूमि को गंगा से प्लावित देखकर सुहोत्र के पुत्र राजा जहनु को, जो परम दयालु और याचकों को मन चाहा देनेवाले थे, परम क्रोध आ गया, आँखे क्रोध से लाल हो गईं, और उसो भावावेश में उन्होंने कहा - गङ्ग ! इह घमंड का फल तुम्हें शीघ्र ही मिलेगा, तुम्हारे इस सब जल राशि को पीकर मै व्यर्थ किये देता हूँ ।' १५५-५७३। ऐसा कह कर राजपि जहनु ने गंगा की समस्त जलराशि पो डाली । महाभाग्यशाली देवता और ऋषिगण गङ्गा के पीने को देखकर गङ्गा को उनकी कन्या के रूप मे उपहार स्वरूप समर्पित कर दिया, तभी से गङ्गा का नाम जाह्नवी पड़ा । राजा यौवनाश्व को पौत्री कावेरी को जहनु ने पत्नी रूप में अंगीकार किया था । युवनाश्व के शाप से उसने गङ्गा का निर्माण किया था। जहनु की भार्या कावेरी सरिताओ में श्रेष्ठ एवं प्रशंसनीय गुणों वाली है । जहूनु ने कावेरी में परम धार्मिक सुहोत्र नामक पुत्र को उत्पन्न किया, जो उसका परम प्रिय था । उसका पुत्र अजक हुआ १५८-६१।