पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८५०

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द्विनवतितमोऽध्यायः दिवोदासादृषद्वत्यां वीरो जज्ञे प्रतर्दनः । तेन पुत्रेन बालेन प्रहृतं तस्य वै पुनः वैरस्यान्तं महाराज्ञा तदा तेन विधित्सता । प्रतर्दनस्य पुत्रौ द्वौ वत्सो गर्गश्च विश्रुतः वत्सपुत्रो ह्यलर्कस्तु संततिस्तस्य चाऽऽत्मजः । अलर्क प्रति राजषगीतश्लोकौ पुरातनौ षष्टिवर्षसहस्राणि षष्टिवर्षशतानि च । युवा रूपेण संपन्नो ह्यलर्कः काशिसत्तमः ॥ लोपामुद्राप्रसादेन परमायुरवाप्तवान् शापस्थान्ते महाबाहुर्हत्वा क्षेमकराक्षसम् | रम्यमावासयामास पुरीं वाराणसीं नृपः संनतेरपि दायाद: सुनोथो नाम धार्मिकः । सुनीथस्य तु दायादः सुकेतुर्नाम धार्मिकः सुकेतनश्चापि धर्मकेतुरिति श्रुतिः । धर्मकेतोस्तु दायादः सत्यकेतुर्महारथः सत्यकेतुसतश्चापि विभुर्नाम प्रजेश्वरः । सुविभुस्तु विभोः पुत्रः सुकुमारस्ततः स्मृतः सुकुमारस्य पुत्रस्तु धुष्टकेतुः स धार्मिकः | धृष्टकेतोस्तु दायादो वेणुहोत्रः प्रजेश्वरः वेणुहोत्रसुतश्चापि गार्ग्य वै नाम विश्रुतः | गाग्यंस्य गर्भभूमिस्तु वात्स्यो वत्सस्य धीमतः ब्राह्मणा क्षत्रियाश्चैव तयोः पुत्राः सुधामिकाः । विक्रान्ता बलवन्तश्च सिंहतुल्यपराक्रमाः ६२६ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६९ ।।७० ॥७१ ॥७२ ॥७३ ॥७४ महत्त्व न समझ कर घणा से छोड़ दिया था ।६०-६३ | राजा दिवोदास से दृषढती नामक पत्नी में प्रतर्दन मामक वीर पुत्र उत्पन्न हुआ, भद्रश्रेण्य के उस बालक पुत्र ने प्रत्तर्दन से छोना हुआ राज्य पुनः छीन लिया । उस राजाधिराज ने इस प्रकार अपने वैर का बदला चुका लिया। प्रतर्दन के वत्स और गर्गं नामक दो पुत्र कहे जाते हैं । वत्स के पुत्र अलर्क हुए. जिनके पुत्र का नाम सन्नति हुआ | राजर्षि अलर्क के लिए ये पुराने दो श्लोक गाये जाते हैं, जिनका आशय इस प्रकार है । साठ सहस्र साठ सौ वर्षो तक काशिराज अलर्क युवा था. लोपामुद्रा की कृपा से उसे इतनी बड़ी आयु प्राप्त हुई थी ।६४-६७। एक सहस्र वर्ष के शाप के व्यतीत हो जाने पर महाबाहु राजा अलर्क ने उस क्षेमक नामक राक्षस को मार कर पुनः मनोहर वाराणसी पुरी को बसाया | सन्नति का उत्तराधिकारी सुनीथ नामक धार्मिक राजा हुआ । सुनीथ का उत्तराधि- कारी सुकेत नामक धार्मिक विचारों वाला राजा हुआ । सुकेतु का पुत्र धर्मकेतु नाम से सुना जाता है । धर्मकेत का उत्तराधिकारी महारथी सत्यवेतु हुआ । सत्यवेतु का पुत्र प्रजेश्वर विभ्र हुआ, विभ्र का पुत्र सुविभ्र और उससे सुकुमार नामक पुत्र की उत्पत्ति कहीं जाती है । ६८-७११ सुकुमार का पुत्र परम धार्मिक धृष्टकेतु हवा, घृष्ठकेतु का उत्तराधिकारी प्रजापालक वेणुहोत्र हुआ । वेणुहोत्र का पुत्र गार्ग्य नाम से विख्यात हुआ । गार्ग्य का पुत्र गर्भभूमि और बुद्धिमान् वत्स का पुत्र वात्स्य हुआ । इन दोनों राजाओं के पुत्र ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों वर्णोंवाले हए, जो परम उत्साही बलशाली, एवं सिंह के समान पराक्रमी थे | काशी के राजाओं का वर्णन कर चुका अब रजि के पुत्रों का वर्णन सुनिये | महाराज रजि के सौ पुत्र थे, जिसमे पाँच पृथ्वी मे