पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८७२

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चतुर्नवतितमोऽध्यायः ॥४४ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ तत्राऽऽपवस्तदा क्रोधादर्जुनं शप्तपान्विभुः । यस्मान्न वर्जितमिदं वनं ते मम हैहय तस्मात्ते दुष्करं कर्म कृतमन्यो हनिष्यति । अर्जुनो नाम कौन्तेयो न च राजा भविष्यति ( ? ) ॥४५ अर्जुन त्वां महावीर्यो रामः प्रहरतां वरः । छित्त्वा बाहुसहस्रं वै प्रभथ्य तरसा बली तपस्वी ब्राह्मणश्चैव वधिष्यति महाबलः । तस्य रामस्तदा ह्यासीन्मृत्युः शापेन धीमतः राज्ञा तेन वरश्चैव स्वयमेव वृतः पुरा | तस्य पुत्रशतं ह्यासीत्पञ्च तत्र महारथाः कृतास्त्रा बलिनः शूरा धर्मात्मानो यशस्विनः । शूरश्च शूरसेनश्च वृष्ट्याद्यं वृष एव च ( ? ) जयध्वजश्च वै पुत्रा अवत्तिषु विशांपतेः । जयध्वंजस्य पुत्रस्तु तालजङ्घः प्रतापवान् तस्य पुत्रशतं ह्येव तालजङ्घाः इति श्रुतम् । तेषां पञ्च गणाः ख्याता हैहयानां महात्मनाम् वीरहोत्रा ह्यसंख्याता भोजाश्चावर्तयस्तश्वा | तुण्डिकेराश्च विक्रान्तास्तालजङ्धास्तथैव च वीरहोत्रसुतश्चापि अनन्तो नाम पार्थिवः | दुर्जयस्तस्य पुत्रस्तु बभूवामित्रदर्शन: अनष्टद्रव्यता चैव तस्य राज्ञो बभूव हु | प्रभावेण महाराजः प्रजास्ताः पर्यपालयत् ॥५० ॥५१ ॥५२ ॥५३ ॥५४ ८५१ 4 सर्वसमर्थ आपव अपने आश्रम को भस्म देखकर बहुत क्रोधित हुए और अर्जुन को उन्होंने इस प्रकार शाप दिया, 'हैहय ! तुमने मेरे वन को जो नहीं छोड़ा ' सो तुम्हारे इस दुष्कर कर्म को भी कोई दूसरा नष्ट करेगा, वह होगा, कुन्तीपुत्र अर्जुन | वह राजा भी न होगा | अजुन ! तुम्हारी इन सहस्र बाहुओं को, वीरों में श्रेष्ठ परम बलवान् परशुराम काट डालेंगे |४२-४६। ब्राह्मण, तपस्वी महाबलवान् परशुराम तुम्हें पराजित कर तुम्हारा संहार करेंगे ।' परम बुद्धिमान् आपत्र के शापवश परशुराम ही उस कीर्तवीर्य को मृत्यु के कारण वने । प्राचीनकाल में राजा ने इसी प्रकार का वरदान भी मांगा था कि मेरी मृत्यु उसके हाथों से हो, जो बल में मुझसे अधिक हो । उस राजा कार्तवीर्यार्जुन के सौ पुत्र थे, जिनमें पाँच महारथी थे। उनके नाम थे, शूर, शूरसेन, वृष्ट्याद्य वृष और जयध्वज ये सभी पुत्र शस्त्रास्त्र धारण करने में प्रवीण, बलवान्, शूरु घर्मात्मा एवं यशस्वी थे । इन सबों ने अवन्ति देश में राज्य किया था । जयध्वज का पुत्र प्रतापशाली तालजंघ था, उसके सौ पुत्र हुए, जो तालजंघ गण के नाम से विख्यात हुए । महान् पराक्रमशाली उन हैहयवंश में उत्पन्न होनेवालों के पाँच गण विख्यात हैं, उनके नाम हैं, वीर होत्रगण, जिनकी गणना नहीं की जा सकती, भोजगण, आवतंगण, तुण्डिकेरगण, जो परम बलशाली थे तथा तालजंघ | वोरहोत्र का पुत्र राजा अनन्त हुआ, उसका पुत्र दुर्जय हुआ, दुर्जय से अमित्रदर्शन का जन्म हुआ ।४७-५३। जैसा कि पहले भी कह चुके हैं उस महाराज कार्तवीर्य अर्जुन के राज्य में लोगों का द्रव्य नष्ट नही होता था, वह अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से समस्त