पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९४९

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

V छेड वायुपुराणम् भविष्यन्ति कुमारास्ते पञ्च देवसुतोपमाः | तेजस्विनः पराकान्ता यज्वानो धार्मिकास्तथा ततोऽङ्गस्तु सुदेष्णाया ज्येष्ठपुत्रो व्यजायत । वङ्गस्तस्मात्कलिङ्गस्तु पुण्ड्रो ब्रह्मस्तथैव च वंशभाजस्तु पञ्चैते बलेः क्षेत्रेऽभवंस्तदा | + इत्येत दीर्घतमसा बलेर्दत्ताः सुताः पुरा प्रजास्त्वपहतास्तस्य ब्रह्मणा कारणं प्रति । अपत्यमस्य दारेषु स्वेषु मा भून्महात्मनः ततो मनुष्ययोन्यां वै जनयामास स प्रजाः । सुरभिर्दीर्घतमसमथ प्रोतो वचोऽब्रवीत् विचार्य यस्माद् गोधर्मं त्वमेवं कृतवानसि | तेन न्यायेन मुमुचे अहं प्रीतोऽस्ति तेन ते तस्मात्तव तमो दीर्घं निस्तुदाम्यद्य पश्य वै । बार्हस्पत्यं च यत्तेऽन्यत्पापं संतिष्ठते तनौ जरामृत्युभयं चैव आघ्राय प्रणुदामि ते । आघ्रातमात्रः सोऽपश्यत्सद्यस्तमसि नाशिते आयुष्मांश्च युवा चैव चक्षुष्मांश्च ततोऽभवत् । गवा दीर्घतमाः सोऽथ गौतमः समपद्यत कक्षीवांस्तु ततो गत्वा सह पित्रा गिरिप्रजाम् | यथोद्दिष्टं हि पित्रर्थे चचार विपुलं तपः ॥८४ ॥८५ ॥८६ ॥८७ ॥८८ ॥८६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ है।८१-८३१ तुम्हारे गर्भ से देवताओं के समान परम सुन्दर एवं प्रभावशाली पाँच पुत्र उत्पन्न होंगे, वे परम धार्मिक, यज्ञपरायण, परमपराक्रमशाली एवं तेजस्वी होगे । ऋषिवर दीर्घतमा के इस वरदान के अनुसार देवी सुदेष्णा से राजा बलि का ज्येष्ठ पुत्र अङ्ग उत्पन्न हुआ । उसके बाद बङ्ग, फिर कलिङ्ग, फिर पुण्ड्र तथा सबसे बाद में ब्रह्म नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वंश की वृद्धि करनेवाले ये पुत्रगण राजा बलि के क्षेत्र पुत्र थे । प्राचीन काल में ऋषिवर दीर्घतमा ने इन्हो पाचों पुत्रों को राजा बलि को प्रदान किया था ८४-८६ भगवान् ब्रह्मा ने किसी कारणवश इस महात्मा को 'तुम्हें अपनी स्त्रियों में सन्तति न होगी- ऐसा अभिशाप दिया था। इसी से उन्हें अपनी पत्नी में कोई सन्तति न हुई, इसी कारण वश उन्होने मनुष्य योनि में सन्ततियाँ उत्पन्न कीं। ऋषि के इस गोधर्म से परम प्रसन्न होकर वृष ने यह वचन कहा 'तुमने गोधर्म को मर्यादा पर भलीभाँति विचार कर पालन किया है, हे मुने ! तुम्हारे इस आचरण से मैं परम प्रसन्न हूँ, देखो, आज महान् अंधकार से मैं तुम्हारी मुक्ति कर रहा हूँ, तुम्हारे शरीर में बृहस्पति के शाप के कारण जो पाप चिरकाल से निबद्ध था, उसे भी तुमसे अलग कर रहा हूँ 1८७-६० अपने नथुनो से सूंघकर तुम्हारे शरीर से वृद्धता एवं मृत्यु के शाप को भी मैं दूर कर रहा हूँ ।' ऐसा कहने के उपरान्त वृषभ के सूंघते ही दीर्घतमा का चिरकालीन अंधकार दूर हो गया, और वे देखने लगे । आशीर्वाद के फलस्वरूप वे दीर्घायुसम्पन्न युवा और नेत्रवान् हो गये । इस प्रकार गौ के आशीर्वाद से ऋषि दीर्घतमा गौतम - इस नये नाम से प्रख्यात हुये । तदनन्तर शुद्रा के गर्भ से समुत्पन्न कक्षीवान् ने पिता के साथ पर्वतीय प्रदेश को प्रस्थान किया और पिता के कल्याणार्थं ऐसी + इत्येत इत्यारभ्य संतानं चोभयोस्तयोरिव्यन्तग्रन्थः ख. घ. पुस्तकयोर्नास्ति ।