पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९६७

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वायुपुराणम् ऋषय ऊचुः श्रोतुं भविष्यमिच्छामः प्रजानां वै महामते । सूत साधं नृपैर्भाव्यं व्यतीतं कीर्तितं त्वया यत्तु संस्थास्यते कृत्यमुत्पत्स्यन्ति च ये नृपाः । वर्षाग्रतोऽपि प्रब्रूहि नामतश्चैव तान्नुपान् कालं युगप्रमाणं च गुणदोषान्भविष्यतः । सुखदुःखे प्रजानां च धर्मतः कामतोऽर्थतः एतत्सर्वं प्रसंख्याय पृच्छतां ब्रूहि तत्त्वतः । स एवमुक्तो मुनिभिः सूतो वुद्धिमतां वरः ॥ आचचक्षे यथावृत्तं यथादृष्टं यथाश्रुतम् ६४६ ॥२६० ॥२६१ ॥२६२ ॥२६३ सूत उवाच 1 ॥२६४ ॥२६५ यथा मे कोर्तितं सर्वं व्यासेनाद्भुतकर्मणा | भाष्यं कलियुगं चैव तथा मन्वन्तराणि तु अनागतानि सर्वाणि ब्रुवतो मे निबोधत । अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि भविष्यन्ति नृपास्तु ये ऐलाश्चैव तयेक्ष्वाकून्सौद्युम्नाश्चैव पार्थिवान् | येषु संस्थाप्यते क्षत्त्रमैक्ष्वाकवमिदं शुभम् तान्सर्वान्कोर्तयिष्यामि भविष्ये पठितान्नुपान् | तेभ्यः परे च ये चान्ये उत्पत्स्यन्ते महीक्षितः ||२६७ क्षत्त्राः पारशघाः शूद्रास्तथा ये च द्विजातयः | अन्ध्राः शकाः पुलिन्दाश्च तुलिका पवनैः सह ॥२६८ ॥२६६ ऋषिगण वोले- महामति सूत जो ! आप भूतकालीन राजाओं का वर्णन तो कर चुके, अब हम लोग भविष्य में उत्पन्न होनेवाले राजाओं के साथ उनको प्रजाओं का वर्णन सुनना चाहते हैं । भविष्य में उत्पन्न होकर वे लोग जिन नवीन विधाओं का प्रवर्तन करेंगे, उनके जो नाम होंगे, उन्हें उनके शासन काल की गणना के साथ वतलाइये। उस समय से उत्पन्न होनेवाली प्रजाओं के सुख दुःख, गुण दोष, युगप्रमाण उनके धर्मार्थ काम सम्बन्धी विचारों को हम लोग सुनना चाहते हैं, यथार्थतः बतलाइये । मुनियों द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ सूत जो ने इन प्रश्नों के विषय में जैसा कुछ देखा था, जैसा सुना था, कहना प्रारम्भ किया 1२६०-२६३ सूत बोले- ऋषिवृन्द ! अद्भुत कर्म शोल व्यास जी ने इस विषय में मुझसे जो कुछ बतलाया है, उसे मैं वतला रहा हूँ । भविष्य में जिस प्रकार कलियुग आयेगा, जितने मन्वन्तर होंगे, जितने राजा लोग उत्पन्न होंगे, मैं उन सब का वर्णन अब कर रहा हूं । २६४-२६५। उन ऐल वंशीय, इक्ष्वाकु वंशीय तथा सौद्युम्नवंशीय राजाओं का वर्णन करूंगा, जिसके वंशजों पर इन सर्वकल्याणकारी इक्ष्वाकुवंशियों का एक मात्र प्रभाव होगा | भविष्य में कहे जानेवाले समस्त राजओं का वर्णन करूंगा, अन्य सामान्य राजा लोग भी उत्पन्न होंगे उन्हें भी वतलाऊँगा । उन सब के अतिरिक्त क्षत्र, पारशव, शुद्र, अन्यान्य द्विजातिवर्ग, अन्ध्र, शक, पुलिन्द, तूलिका यवन, कंवतं, आभीर, शवर प्रभृति अन्यान्य म्लेच्छ जातियों का वर्णन भी करूंगा,