पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९८६

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नवनवतितमोऽध्यायः ॥४५५ ॥४५६ ॥ ४५७ ॥४५८ ॥४५६ ततः शतं तु पौलानां श्वेतकाशकुशादयः । ततोऽवरे सहस्रं वै येऽतोताः शतबिन्दवः ईजिरे चाश्वमेधैस्ते सर्वे नियुतदक्षिणैः । एवं राजर्षयोऽतीताः शतशोऽथ सहस्रशः मनोवँवस्वतस्यास्मिन्वर्तमानेऽन्तरे तु ये | तेषां निबोधतोत्पन्ना लोके संततयः स्मृताः न शक्यं विस्तरं तेषां संतानानां परम्परा | तत्पूर्वापरयोगेन वक्तुं वर्षशतैरपि अष्टाविंशद्युगाख्यास्तु गता वैवस्वतेऽन्तरे | एता राजर्षिभिः सार्धं शिष्टा यास्ता निबोधत चत्वारिंशच्च ये चैव भविष्याः सह राजभिः | युगाख्यानां विशिष्टास्तु ततो वैवस्वतक्षये एतद्वः कथितं सर्वं समासव्यासयोगतः । पुनरुक्तं बहुत्वाच्च न शक्यं तु युगैः सह एते ययातिपुत्राणां पञ्चविशा विशां हिताः । कीर्तिता ह्यमिता ये ये लेकान्वं धारयन्त्युत लभते च वरात्पञ्च दुर्लभानिह लौकिकान् । आयुः कीर्ति धनं पुत्रान्स्वर्गं चाऽऽनन्त्यमश्नुते ॥४६३ ॥४६० ॥४६१ ॥४६२ एक सो, पौलों की एक सौ, तथा श्वेत काश कुशादिकों की एक सौ की है। शतविन्दु नामक एक सहस्र राजा हो चुके हैं ।४५३-४५५॥ ये सभी नृपतिगण करोड़ों की दक्षिणावाले अनेक अश्वमेध यज्ञों से अनुष्ठान करनेवाले थे, सैकड़ों सहस्रों की संख्या में ऐसे उदारचेता नृपति व्यातीत हो गये हैं। इसी वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर में, इन्हीं मनु के अधिकार काल में, जो राजा हो गये हैं, उन्हीं की बहुत बड़ी संख्या में संततियां उत्पन्न हुई हैं, उन सब को परम्परा का विस्तृत विवरण पहले और पीछे की सारी संख्याएँ मिलाकर सौ वर्ष में भी प्रस्तुत नही किया जा सकता १४५६-४५८ वैवस्वत मन्वन्तर का अट्ठाईसवी युग समाप्तप्राय हो गया है, इस समय राजषियों के साथ जो सन्ताने शेष है, उन्हें सुनिये । भविष्य में इसी युग में चालीस अन्य विशिष्ट राजा लोग राज्य करेंगे, वैवस्वत का सर्वाशत: अवसान होगा |४५६-४६० प्रसंगतः संक्षेप और विस्तार में मैं आप लोगों को राजाओं का यह वृत्तान्त बतला चुका, प्रत्येक युगों में होनेवाले समस्त राजाओं का वृत्तान्त एवं वंशक्रम बहुत अधिक एवं पुनरुक्ति के कारण में नहीं बतला सकता । सन्नाद् ययाति के पुत्रों से होने वाले प्रजारक्षक पच्चीस राजवंशों का एवं उनके शासना- धीन देशों का वर्णन कर चुका, वे सब के सब अमित प्रभावशाली एवं बलवान् थे, बड़े प्रेम से समस्त लोकों का पालन करते थे। इस पवित्र वृत्तान्त को धारण करने से तथा सुनने से मनुष्य दीर्घायु, यश, धन, पुत्र, और अनन्त काल व्यापी स्वर्ग निवास इन पांच वरदानों को प्राप्त करता है । इस लोक में ये वरदान परम दुर्लभ हैं ।