६७६ वायुपुराणम् त्रयोदशे तु पर्याये भाव्या रौच्यान्तरे पुनः । त्रय एव गणाः प्रोक्ता देवानां तु स्वयंभुवा ब्रह्मणो मानसाः पुत्रास्ते हि सर्वे महात्मनः । सुत्रामाण: सुधर्माणः सुकर्माणश्च ते त्रयः त्रिदशानां गणाः भोक्ता भविष्याः सोमपायिनः । त्रयस्त्रिशद्देवतायाः प्राभविष्यन्त याज्ञिकैः आज्येन पृषदाज्येन ग्रहश्रेष्ठेन चैव हि । देवैर्देवास्त्रर्यास्त्र शत्पृथक्त्वेन निवोधत सुत्रामाणः प्रयाज्यास्तु आज्यपा नाम सांप्रतम् । सुकर्मणोऽनुयाज्यास्तु पृषदाज्याशिनस्तु ये उपयाज्या: सुधर्माण इति देवाः प्रकीर्तिताः । दिवस्पतिर्महासत्त्वस्तेषाभिन्द्रो भविष्यति पुलहात्मजपुत्रास्ते विज्ञेयास्तु रुचेः सुताः । अङ्गिराश्चैव धृतिमान्पौलस्त्यः पथ्यवांस्तु सः पौलहस्तत्त्वदर्शी च भार्गवश्व निरुत्सकः । निष्प्रकम्पस्तथाऽऽत्रेयो निर्मोहः कश्यपस्तथा स्वरूपश्चैव वासिष्ठः सप्तैते तु त्रयोदशे | चित्रसेनो विचित्रश्च तपोधर्मधूतो भवः अनेकक्षनबद्धश्च सुरसो निर्भयः पृथः । रौच्यस्यैते मनोः पुत्रा ह्यन्तरे तु त्रयोदशे चतुर्दशे तु पर्याये भौतस्याप्यन्तरे मनोः । देवतानां गणाः पञ्च प्रोक्ता ये तु भविष्यति चाक्षुपाश्च कनिष्ठाश्च पवित्रा भाजरास्तथा । * वाचावृद्धाश्च इत्येते पञ्च देवगणाः स्मृताः ॥१०० ॥१०१ ॥१०२ ॥१०३ ॥१०४ ॥१०५ ॥१०६ ॥१०७ ॥१०८ ॥१६ ॥११० ॥१११ एवं ब्रह्मा के मानसिक पुत्र कहे जाते हैं। उनके नाम हैं, सुत्रामा, सुघर्मा, और सुफर्मा । ये ही भावो मन्वन्तर में सोमरस पान करनेवाले देवताओं के पदों पर प्रतिष्ठत होते है । यज्ञकर्ताओं के समेत इस मन्वन्तर मे देव- ताओं की कुल संख्या तैतीस होती है |६८-१०२१ आज्य, पृषदाज्य, ग्रहश्रेष्ठ एवं अन्याय देवगणों को मिलाकर भी वह देवसंख्या तैंतीस ही होती है। इनका अलग अलग वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये । सम्प्रति प्रयाज और माज्यप नाम से प्रसिद्ध सभी देवगण सुत्रामा नामक गण के अधीन हैं । अनुयाज्य और पृषदाज्याशी देवगण सुकर्मा नामक गण के अन्तर्गत है |१०३-१०५। उपयाज्य नामक देवगण सधर्मा नामक गण के अधीन कहे गये हैं । इन सब देवगणों के स्वामी इन्द्र महावलवान् दिवस्पति होगे ।१०५१ रुचि के इन पुत्रगणों को पुलह के पौत्र जानना चाहिए | अङ्गिरा पुत्र घृतिमान्, पुलस्त्यगोत्रीय पथ्यवान्, पुलह नन्दन तत्त्वदर्शी, भृगुगोत्रीय निरुत्सक, अत्रिगोत्रोद्भव निष्प्रकम्प, कश्यपात्मज निर्मोह, और वसिष्ठ वंशोत्पन्न स्वरूप - ये सात तेरहवें मन्वन्तर के ऋषि कहे जाते हैं। चित्रसेन विचित्र तपोधर्म, घृत, भव, अनेकबद्ध, क्षत्रवद्ध, सुरस, निर्भय और पृथ – ये रोच्य मन्वन्तरीय मनु के पुत्र कहे जाते हैं । १०६ - १०६ । भविष्यकालीन चौदहवें भौत्य नामक मन्वन्तर में देवताओं के पाँच गण कहे जाते है। उनमें नाम है, चाक्षुष, कनिष्ठ, पवित्र, भाजर और वाचावृद्ध | परवर्ती मनु के सातों पुत्रो को ही चाक्षुष देवगण जानो, पण्डित जन बृहदादि साम समूह
- इत आरभ्य विद्धि चाक्षुषानित्यन्तग्रन्थो घ. पुस्तके नास्ति ।