पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् .djvu/२१८

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यस्य गन्धं समाघ्राय पलायन्तेऽपरे गजाः । स सुगन्धगजः प्रोक्त इति । अत्राति

    शयकोक्तिरलङ्कारस्तेनाऽस्य लोकोत्तरं शौर्य ध्वन्यते ।
                                भाषा
          इन्द्र को इस विक्रमाङ्क देव का संग्राम देखने की उत्कण्ठा हुई । परन्तु
         इन्द्र का घोड़ा उच्चैःश्रवा, इस राजकुमार के कान तक खींच कर चलाये
         जाने वाले धनुष के टङ्कार को न सहन कर सका । अर्थात् उसके धनुष के
         टङ्कार से भड़क गया । इसलिये इन्द्र ऐरावत नाम के अपने हाथी पर सवार
         हुआ । परन्तु इस राजकुमार के युद्ध की भावना से क्रोधयुक्त गन्ध गजों की
         गन्ध से (भयभीत होकर) भाग जाने में ही प्रेम रखने वाला अर्थात् अपना
         कल्याण समझने वाला ऐरावत भी इन्द्र को युद्धभूमि से दूर भगा ले गया ।
           == काञ्ची पदातिभिरमुष्य विलुण्ठिताभूद्
                                देवालयध्वजपटावलिमात्रशेषा ।
              लुण्टाकलुप्तनिखिलाम्बरडम्बराणां
                                कौपीनकार्पणपरेव पुराङ्गनानाम् ॥७६॥ ==
                                 अन्वयः
              अमुष्य पदातिभिः विलुण्ठिता (सती) देवालयध्वजपटावलिमात्रशेषा
              काञ्ची लुण्टाकलुप्तनिखिलाम्बरडम्बराणां पुराङ्गनानां कौपीनकार्पण्परा
              इव अभूत् ।