एवं कार्त्स्न्यम् || १८४
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पुटसंख्या
| उपपन्नस्तल्ल्क्षण |
३०९
| उपपूर्वमपीत्येके |
३५९
| उपमर्द च |
३४५
| उपलब्धिवदनियम: |
213
| उपसंहारदर्शनात् |
१५५
| उपसंहारोऽर्थाभेदात् |
२८८
| उपस्थितेऽतस्ततू |
३१८
| उपादानाद्विहारे |
२१२
| उभयथा च दोषातू |
१७३, १७८
| उभयथापि न कर्म |
१७०
| उभयव्यपदेशातू |
२७४
| उभयेऽपि हि मेदेन |
७३
| ऊ
| ऊध्र्वरेतःसु च |
३४५
| ए
| एक आत्मनः शरीरे |
३२८
| एतेन मातरिश्वा |
१९५
| एतेन योग: प्रत्युक्तः |
१४१
| एतेन शिष्टापरिग्रहा |
१४७
| एतेन सर्वे व्याख्याताः |
१३८
| एवं मुक्तिफलानियम |
३६४
| एवमप्युपन्यासात् |
४९४
| ऐ
| ऐहिकमप्रस्तुत |
३६४
| क
| कम्पनात् |
११२
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पुटसंख्या
| करणवेच्चेन्न |
१८६
| कर्ता शास्रार्थवत्त्वात् |
२११
| कर्मकर्तृव्यपदेशाच्च |
६२
| कल्पनोपदेशाच्च |
१२२
| कामकारेण चैके |
३४५
| कामाच नानुमान |
३९
| कामादीतरत्र |
३१६
| काम्यास्तु यथाकामं |
३३३
| कारणत्वेन च |
१२६
| कार्ये बादरि: |
३९३
| कार्याख्यानादपूर्वम् |
२९७
| कार्यात्यये तदध्यक्षेण |
३९४
| कृतप्रयन्नापेक्षस्तु |
२१५
| कृतात्ययेऽनुशयवान् |
२४३
| कृत्स्नप्रसक्तिः |
१५६
| कृत्स्नभावातु |
३६२
| क्षत्रियत्वगतेश्च |
१०८
| ग
| गतिशब्दाभ्यां तथाहि |
९३
| गतिसामान्यातू |
३२
| गतेरर्थवत्वम् |
३०८
| गुणसाधारण्यश्रुतेश्च |
३३५
| गुणाद्वालोकवत् |
२०६
| गुहां प्रविष्टावात्मानौ |
६६
| गौणश्चेन्नात्मशब्दात् |
२५
| गौण्यसंभवाच्छब्दाच्च |
१९२
| गौण्यसंभवात्ततू |
२२४
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