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पुटसंख्या
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तुल्य तु दर्शनम् |
३४१
| तृतीयशब्दावरोधः |
२५०
| तेजोऽतस्तथा ह्याह |
१९६
| त्रयाणामेव चैवम् |
११९
| त्र्यात्मकत्वात्तु |
२३८
| द
| दर्शनाच्च |
२४९,३३६,३९६
| दर्शयतचैवं प्रत्यक्ष |
४११
| दर्शयति च |
२८७, ३००
| दर्शयति चाथो |
२६६
| दहर उत्तरेम्य: |
९१
| दृश्यते तु |
१४३
| देवादिवदपि लोके |
१५५
| देहयोगाद्वा सोऽपि |
२५८
| द्युभ्वाद्यायतनं |
८२
| द्वादशाहवदुभय |
४०७
| ध
| धर्म जैमिनिः |
२८२
| धर्मोपपतेश्च |
८७
| धृतेश्च महिम्नः |
९४
| ध्यानाच्च |
३७०
| न
| न कर्माविभागादिति |
१६२
| न च कर्तुः करणम् |
१८८
| न च कार्ये प्रत्यभिसंधिः |
३९६
| न च पर्यायादपि |
१८४
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पुटसंख्या
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न च स्मार्तमतद्धर्म |
७३
| न चाधिकारिकमपि |
३५८
| नतु दृष्टान्तभावात् |
१४४
| न तृतीये तथोपलब्धेः |
२४८
| न प्रतीके न हि सः |
३६८
| न प्रयोजनवत्वात् |
१६०
| न भावोऽनुपलब्धे |
१८२
| न वक्तुरात्मोपदेशात् |
५४
| न वा तत्सहभावाश्रुतेः |
३३५
| न वा प्रकरणभेदात् |
२९०
| न वायुक्रिये पृथग् |
२२७
| न वा विशेषात् |
३००
| न वियदश्रुते |
१९१
| न विलक्षणत्वादस्य |
१४१
| न संख्योपसंग्रहात् |
१२३
| न सामान्यादपि |
३२६
| न स्थानतोऽपि परस्य |
२६२
| नाणुरतच्छूतेरिति |
२०४
| नातिचिरण विशेषात् |
२५१
| नात्मा श्रुतेर्नित्यत्वाच्च |
२०२
| नानाशब्दादिभेदात् |
३३२
| नानुमानमतत् |
८४
| नाभाव उपलब्धेः |
१८१
| नाविशेषात् |
३४४
| नासतोऽदृष्टत्वातू |
१७९
| नित्यमेव च भावात् |
१७२
| नित्योपलब्ध्यनु |
२१०
| नियमाच्च |
३४०
| निर्मातारं चैके |
२५६
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