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पुटसंख्या
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बुद्धयथेः पादवत् |
२७८
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ब्रह्मदृष्टिरुत्कर्षात् |
३६९
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ब्राह्मण जैमिनिः |
४०३
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भ
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भाक्तं वानात्मवित्वात् |
२४२
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भावं जैमिनिः |
४०६
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भाव तु बादरायण: |
१०६
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भावशब्दाच्च |
३४८
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भावे चोपलब्धेः |
१४९
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भावे जाग्रद्वत् |
४०८
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भूतादिपादव्यपदेशः |
५१
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भूतेषु तच्छूतेः |
३७९
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भूमा संप्रसादात् |
८५
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भूम्रः क्रतुवत् |
३३०
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भेदव्यपदेशाच्च |
३८
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भेदव्यपदेशाच्चान्यः |
४४
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मेदव्यपदेशात् |
८४
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भेदश्रुतेर्वलक्षण्याच्च |
३८
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भेदादिति चेन्न |
४४
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भेदव्यपदेशात् |
८४
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भेदश्रुतेर्वैलक्षण्याच्च |
२३१
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भेदादिति चेन्न |
२६३
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भेदान्नेति चेत् |
२८६
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भोक्त्रापतेरविभागः |
१४७
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भोगमात्रसाम्य |
४१२
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भोगेन त्वितरे |
३७६
|
म
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मध्वादिष्वसंभवाद् |
१०५
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मन्त्रवर्णात् |
२१७
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मन्त्रादिवद्वा |
३३०
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पुटसंख्या
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महद्दीर्घवद्वा |
१६९
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महद्वच |
१२०
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मांसादिभौमं यथा |
२३३
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मान्त्रवर्णिकमेव च |
३७
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मायामात्रं तु कात्स्न्येन |
२५६
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मुक्तः प्रतिज्ञानात् |
४०१
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मुक्तोपसृप्यव्यपदेशात् |
८३
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मुग्धेऽर्धसंपत्ति |
२६१
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मौनवदितरेषाम् |
३६२
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य
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यत्रकाग्रता तत्र |
३७१
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यथा च तक्षोभयधा |
२१४
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यथा च प्राणादिः |
१५२
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यदेव विद्ययेति हि |
३७५
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यावदधिकारम् |
३०९
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यावदात्मभावित्वात् |
२०९
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यावद्विकारं तु |
१९४
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योगिनः प्रति स्मर्येते |
३८९
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योनिश्च हि गीयते |
१३७
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योनेः शरीरम् |
२५४
|
र
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रचनानुपपत्तेश्च |
१६४
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रश्म्यनुसारी |
३८६
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रूपादिमत्वाच |
१७३
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रूपोपन्यासाश्च |
७६
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रेत:सिग्योगोऽथ |
२५३
|
ल
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लिङ्गभूयत्वात्तत् |
३२१
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