नहीं सकते। दूसरा-रूप गुण, और रूपि द्रव्य का कर्म,मकाशा में प्रत्यक्ष होतें हैं। अन्धकार के रूप कर्म प्रकाश के होते ही नाम मात्र भी नहीं रहते । इस लिए तम द्रव्य गुण कर्म नहीं, किन्तु प्रकाशा का अभाव ही तम है ।
तेजसोद्रव्यान्तरेणावरणाच ॥ २० ॥
तेज का अन्य द्रव्य से आवरण होने से (भकाशस्वभाव तेज जब किसी द्रव्य से रुक जाता है, तब अन्धकार हो जाता है, जैसे दिन के समय काली घटा हो जाने सें । इस से भी यही सिद्ध होता है, कि प्रकाश का अभाव तम है । सो यह तेज का अभाव तम है, क्योंकि तेज उस समय नहीं है। और यह जो अन्धकार में गति की भतीति होती है, यह आवरक द्रव्य के न ठहरा रहने से प्रतीति होती है। द्रव्यान्तर से तेज का आवरण अन्धकार है, और वह तेज का आवरक द्रव्य एक स्थान में ठहरता नहीं । उस आवरक के अव्यवस्थान से अन्ध कार की गति की प्रतीति है)
सै-कर्म शान्यता का प्रकरण आरम्भ करते हैं। हैं
दिकालावाकाशंच क्रियावद् वैधम्र्यान्निष्कि याणि ॥ २१ ॥
दिा काल और आकाशा क्रिया वालों से विरुद्ध धर्म वाले होने से निष्क्रिय हैं।
क्रिया नोदन से वा अभिघात से उत्पन्न होती है, और परिठिन्न द्रव्य में होती है। दिशा काल और आकाश मूर्त द्रव्य नहीं, इस लिए इन में नोदन वा अभिघात नहीं होता,