गुणों से दिशा व्याख्या की गई (दिशा भी किमी द्रव्या न्तर का समवायिकारण नहीं ) ।
कारणेन कालः ॥ २६ ॥
( निमित्त-) कारण रूप से काल व्याख्या किया गया है (काल हरएक उत्पत्ति वाली वस्तु का कारण तो है, पर निमित्त कारण है । ममवायि कारण किसी का नहीं )
षष्ठ अध्याय-प्रथम आह्निक ।
सं-लौकिक कर्म परीक्षा किये गए, अब अलौकिक परीक्ष णीय है, उन का ज्ञान वेंद से होता है, इस लिए पहले वेद के प्रामाण्य की परीक्षा करते है
बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे ॥ १ ॥
बुद्धिपूर्वक है वाक्य रचना वेद में ।
व्या-वाक्य से वक्ता की बुद्धि का पता लगता है, क्योंकि जो जैसा जानता है, वह वैसी वाक्यरचना करता है । वेद वचनों से अलौकिक धर्म आदि का यथार्थ बोध होता है, इस से सिद्ध है, कि वेद का वचका वह है, जिस को धर्म आदि का साक्षात्कार हं ।
ब्राह्मणे संज्ञा कर्मसिद्विलिंगम् ॥ २ ॥
ब्राह्मण में संज्ञा का कार्य सिद्धि का लिङ्ग है ।
.. व्या-त्राह्मण में जो .'छन्दांसि छादनात् ? छन्द ( पाप के ) द्वांपने के कारण कहलाते हैं, इत्यादि वैदिक संज्ञाओ को अन्वर्थे सिद्ध किया है, यह .भी वेदों की बुद्धिपूर्वक रचना का लिङ्ग है। क्योंकि अन्वर्थे नाम वही रख सकता है, जो