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भूमिका

चार्य आदि प्राचीन आचार्यो के ग्रन्थों में उद्वत सूत्रों का संग्रह करना चाहियें, तब वड़ी प्रवल सम्भावना है, कि सारे सूत्र अपने मूलरूप में लाए जा सकेंगे। इस समय इस काम को हाथ में लेने की हमारे पास पूरी सामग्री नहीं, तथापि यथा शक्य इस काम को प्रवृत्त रखते हुए सम्प्राति मुद्रित सूत्रों के आधार पर व्याख्यान आरम्भ करते हैं। व्याख्यान ) वैशेशिक सूत्रों की शैली हमने यह रक्खी है, कि का ढंग / जहां अर्थ देने से ही पद पदार्थ-भी स्पष्ट हो जात हैं, वहां तो सूत्रार्थ ऐसा स्पष्ट करके लिख दिया है, कि उसी , से पद पदार्थ का भी यथार्थ वोध हो जाता है, और जहां पद च्छेद और पदार्थोक्ति की आवश्यकता जान पड़ी , है, वहां पद चच्छेद और पदार्थ भी दे दिया है। सूत्रार्थ के अनन्तर, व्याख्यान रक्खा है, उस में चड़ी सरल और सुवोध भाषा में वैशेषिक के गूढ़ विपयों के मर्म खोल २ कर समझा दिये हैं। सम्पादक