तथा विरुद्धानां त्यागः ॥ १३ ॥
वैसे विरुद्ध का त्याग (हीन सम और विशिष्ट की दृष्टि से इस प्रकार हो कि)
हीने परे त्यागः ॥ १४ ॥
यादि विरोधी अपने से हीन (हीन गुण) हो, तो उस का त्याग ( करना चाहिये ) ।
सम आत्मत्यागः परत्यागो वा ॥ १५ ॥
सम हो, तो अपना त्याग वापर का त्याग (करना चाहियें)
विशिष्ट आत्मत्यागः ॥ १६ ॥
विशिष्ट हो, तो अपना त्याग ( करना चाहिये ) ।
षष्ठम अध्याय-द्वितीय आह्निक ।
सैगति-अब विशेष से धर्म परीक्षा के लिए कर्म फल की विवे चना करते हैं
दृष्टा दृष्ट प्रयोजनानां दृष्टाभावे प्रयोजन मभ्यु दयाय ॥ १ ॥
दृष्ट और अदृष्ट प्रयोजन वालों में से दृष्ट के अभाव में प्रयो जन अभ्युदय के लिए होता हैं ।
व्या-कई कर्म यहाँ फल भोग के लिए किये जाते हैं, जैसे खती व्यापार आदि, कई पारलौकिक फल के लिए, जैसे अश्ध मेष आदि । सो वैदिक कर्मों में से जिन का फल दृष्ट है, वे तो दृष्ट फल के लिए हैं, पर जिन का दृष्ट फल नहीं, उन का भयो जन अदृष्ट आत्म संस्कार द्वारा अभ्युदय होता है ।