राग उत्पन्न होता है। पूर्वे जन्म के अदृष्ट से भी किसी का किसी में राग विशेष होता है। जैसे नल दमयन्ती का परस्पर हुआ ) ।
जातिविशेषाच ॥ १३ ॥
जाति विशेष से भी (वस्तु विशेष में राग द्वेप होता है। जैसे ऊंट आदि का कांटे आदि में राग, और नउले का सर्प में द्वेष होता है)
इच्छाद्वषपूर्विका धर्माधर्मयोः प्रवृत्तिः ॥१४॥
इच्छा द्वेप पूर्वक धर्म और अधर्म में प्रवृत्ति होती है।
व्या-प्राय, राग सें धर्म में-(यागादि में ) और द्वेप से अधर्म (हिंसादि) में प्रवृत्ति होती है । पर कभी द्वेष से भी धर्म में और राग से भी अधर्म में होती है, जैसे आततायी से द्वेष के कारण उस के मारने में, और धन में राग के कारण चोरी में प्रवृत्ति होती है।
सं-अब,धर्माधर्म का कार्य प्रेत्य भाव बतलाते हैं
तत्संयोगो विभागः ॥ १५ ॥
संयोगं होता है, इसी का नाम जन्म है, और िफरविभाग होता है, इसी का नाम मरण हैं । यह जन्ममरण का सिलसिला बना आत्मकर्मसु मोक्षो व्याख्यातः ॥ १६॥. :