पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/११८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
११६
'वैशेषिक-दर्शन ।

कारणगुणपूर्वकाः पृथिव्यां पाकजाः । ६ ।

कारणगुणपूर्वक होते है (रूप रस गन्ध स्पर्श ) और पृथिवी में पाकज भी होते हैं। ।

'व्या-रूप रसं गन्ध स्पर्श कारणगुणंपूर्वक होते हैं। जैसे कारण में हों, वैमे उनं के कार्य में होते हैं। वेत मीठे शीत अणुओं से वना जल श्धत मीठा और शीत होता है। भास्वर उष्ण अणुओं से वना तेज भास्वर और उष्ण होता है। श्धत तन्तुओं मे वना वस्त्र चत और नीली तन्तुओं से वना नीला होता हे। इस प्रकार रूप ग्म गन्ध स्पर्श कारणगुणपूर्वक तो पृथिवीजल तेज वायु इन चारों में होते हैं, पर पृथिवी मेंपाकज भी होते हैं, अर्थात् तेज के संयोग से भी उत्पन्न होते हैं। जैसे आपाक में पकाने से मट्टी के वर्तनों का रूप' लाल हो जाता. है। औरं पके हुए आम के रूप रस गन्ध स्पर्श सभी बदल जाते हैं । अव पके हुए घड़े को फोड़े, तो उस के अन्दर कें छोटे २ अणु भी लाल ही निकलते हैं । इस से स्पष्ट है, कि यह नया रूप अणुओं तकं बदल गया है। इस से सिद्ध है, कि पृथिवी के परमाणुओं के रूपादे भी तेज के संयोग से बदल जाते हैं, अतएव नित्य पृथिवी ( परमाणु रूपा पृथिवी ) के भूी,रूपाद अनित्य हैं।

सं-किस प्रकार कारण के गुण कार्य में गुण उत्पन्न करते है १ इस का उत्तर देते है

एकु द्रव्यत्वात् ॥ ७ ॥

एक आश्रय वालां होने से

ॐय-वस्त्रजिसे में रूपं उत्पन्न होना है, वह तन्तुओं के