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अ. १ आ. १ सू. ८

ऑश्रय है, और उन्हीं तन्तुओं में वह रूप है, जिस ने वस्त्र में रूप उत्पन्न करना है। सो इस प्रकार कार्य के साथ एक आश्रय में रहने से कारण के गुण कार्य में अपने सजातीय गुण उत्पन्न करत हैं ।

सै-संख्या के गुण होने में वादियों का विवाद है, इस लिए क्रम को उलांघ,कर सूचीकटाह न्याय से पहले' परिमाण की परीक्षा करत है

अणोर्महतश्चोपलब्ध्यनुपलब्धी नित्ये व्या ख्याते ॥ ८ ॥

अणु का अपत्यक्ष होना और महत का प्रत्यक्ष होना नित्य ( नित्यों के मकरण में=४ । १ में ) व्याख्या किये गए हैं। सैस-महत् जो प्रत्यक्ष है, वह जल्य है, उसके कारण बतलाते हैं ।

कारणबहुत्वाच ॥ ९ । ।

कारंण के बहुत्व से

व्या-बहुत से अवयवो केमेलसेस जब एक द्रव्य उत्पन्न होता है, तो उस में महत् परिमाण उस के अवयवों के बहुत्व से उत्पन्न होता है । अर्थात् सारे अवयव मिलकर एक परिमाण को आग्म्भ करते हैं। इस लिए वह द्रव्य उन की अपेक्षा महत् होता है। इस प्रकार होते २ जव दृष्टि के योग्य होता है, तो महत् प्रत्यक्ष उपलब्ध होता है ।

अतो विपरीतमणु ॥ १० ॥

. इस से (महत परिमाण से) उलट अणु होता है। { व्या-वैशेषिकप्रक्रिया इस प्रकारमानी गई है, कि परिमाण .