पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१२२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
१२०
'वैशेषिक-दर्शन ।

एक कालत्वात् ॥ १२ ॥

एक फाल में होने से ।

व्या-एक ही वस्तु में एक ही काल में प्रतीत होते हैं, इस लिए ये अणुत्व महत्व सापेक्ष हैं। एक की अपेक्षा से वह जिस काल में अणु है, दूसरे की अपेक्षा से उसी काल में महत हो। सकता है ।

दृष्टान्ताच ॥ १३ ॥

दृष्टान्त से ।

व्या-देखा जाता है, कि यज्ञदत्त की सेना देवदत्त की सेना से वड़ी है और आधक शूरवीर है, पर विष्णुमित्र की सेना से विपरीत है । तमालवन की अपेक्षा पद्मवन सुरभि है, चन्दन वन की अपेक्षा विपरीत है, इत्यादि अनेकों दृष्टान्त हैं ।

संस-अणु, अणुतर, अणुतम और महतू, महत्तर, महत्तम ऐसी प्रतीति से अणुत्व में अणुत्व और महत्व में महत्व की सिद्धि होती है, इस आशंका को मिटाते हुए कहते हैं

अणुत्वमहत्वयोरणुत्वमहत्त्वाभावः कर्मगुणै व्याख्यातः ॥ १४ ॥

अणुत्व और महत्त्व में अणुत्व. और महत्त्व का अभाव कर्म और गुणों मे व्याख्या किया गया।

सै-* कर्म गुणैः' के आशय को खोलते है

कर्मभिः कर्माणि गुणश्च गुणा व्याख्याताः । १५

कम से कर्म और गुणों स गुणु व्याख्या किये गए (जैसे जाता है, और शीघ्र जाता है। यहां बीघ्रता पहली गति के