का फिर आगे अन्य से संयोग होने पर, और विभक्तों का फिर परस्पर विभाग होने पर जो यह व्यवहार होता है, कि सैयोग गे संयोग और विभाग में विभाग हुआ, यह व्यवहार मात्र है, संयोग और विभाग वहां भी द्रव्यों का ही हुआ है)
-उदाहरण के लिए (७ । १ । १५-१६ में) उक्त चिपय का स्मरण कराते है
कर्मभिः कर्माणिगुणैर्गुणा अणुत्वमहत्त्वाभ्या मिति ॥ १२ ॥
स-कार्य कारण के परस्पर संयोग विभाग क्यों नहीं होते, इस आश्झा का उत्तर देते हैं
युत सिद्यभावात् कार्यकारणयोः संयोगविभागौ न विद्येते ॥ १३ ॥
मिल कर इकट्टे न होने से कार्य और कारण का संयोग विभाग नहीं होता है ।
व्या-सयोग और विभाग उन का होता है, जो पहले अलग २ हों, फिर अगपस में मिल कर इकडे हों। इस नियम के अनुसार यदि तन्तु और यस्त्र पहले अलग २ रह कर फिर मिलते, तब उन का संसयोग और विभाग होता । पर वस्त्र कभी तन्तुओं से अलग रहना नहीं। इस लिए उन का संयोग विभाग नहीं माना जाता । ऐसे ही किसी भी कार्य का कारण के साथ संयोग विभाग नही होता ।
न-प्रसंग से शव्द और अर्थ का सम्वन्ध निर्धारण करने के
लिए संयोग सम्वन्ध का खण्डन करते हैं
'गुणत्वात् ॥ १४ ॥