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अ. १ आ. १ सू. ८

सैयौग-वाळे दण्ड के निमित्त (दण्डी=दण्ड वाला ) और समवाय वाले 'अङ्ग के निमित्त ( इस्ती=*ड वाला ' प्रतीति होती है (ऐसी प्रतीति शब्द अर्थ में नहीं होती, jक शब्द बाला घड़ा है, वा घड़े वाला शब्द है, इस लिए शब्द अर्थ का सम्बन्ध नहीं घट सकता है) ।

स-तो फिर शब्द से अथै की कैसे प्रतीति होती है, इस का उत्तर देते हैं

सामयिकः शब्दादर्थे प्रत्ययः ॥ २० ॥

सांकेतिकी है शाब्द से अर्थ की प्रतीति (इस शब्द से यह अर्थ जानना, यह जो शब्द और अर्थ का संकेत है इस संकेत के निर्मित ही शाब्द से अर्थ की प्रतीति होती है, अतएव एक ही अर्थ के बोधनार्थ भिन्न २ भाषा भाषियों के अलग । संकेत है और हर एक को अपने संकेतित शब्दों से ही अर्थ की ऋतीति होती है। सैकेत के न जानने वाले को शब्द सुन कर भी अर्थ की मतीति नहीं होती ) ।

संस-क्रम'प्राप्त परत्व अपरत्व की परीक्षा आरम्भ करते हैं

एकदिकाभ्यामेककालाभ्यां सन्निकृष्ट विप्रकृ टाभ्यां परमपरंच ॥ २१ ॥

एक दिशा वाळे वा एक काल वाले सश्रीपी दूरस्थ दो की अपेक्षा से पर ‘और अपर होता है ( परत्व और अपरत्व दी मकार का है, दैशिक=देशाकृत, और कालिक=कालकृत । एक ही दिशामैं जो दो वस्तुओं में से एक तोदूर और दूसरी निकट हों, तो उन में से एक में 'परली वस्तु' और दूसरी में ‘वस्ली