वैशेषिक दर्शन । व्या०-धर्म का जो लक्षण पूर्व किया है, कि ‘याथर्थ उन्नति और मोक्ष की सिद्धि जिम से हो वह धर्म है' वैसे धर्म के प्रति पादन करेन से धर्म के विषय में वेद को प्रमाण माना जाता है, क्योंकि जो जिम विषय में प्रामाणिक अर्थ का प्रतिपादन करता है , वही उस विषय में प्रमाण होता है। संगति-लक्षण और प्रमाण से धर्म की सिद्धि करके, धर्मे से. मोक्ष की सिद्धि में वैशेषिक शास्त्र की उपयोगिता दिखलाते हैं
धर्म विशेषप्रसूताद् द्रव्यगुण गुणकर्म सामान्य विशेष समवायानां पदार्थानां साधम्येवेधम्याभ्यां तत्त्वज्ञानान्निः श्रेयसम् । ४ ।
अर्थ-धर्म विशेष से उत्पन्न हुआ जो, द्रव्य, गुण, कर्म,सामा न्य, विशेष और समवाय (इतने) पदार्थो का साधम्र्य और वैधम्र्य सें तत्त्वज्ञान, उस से मोक्ष होता है ।
व्या०-इस जन्म वा पूर्व जन्म में किये पुण्य कर्म से द्रव्यादे पदार्थो का तत्त्वज्ञान होता है, तव मनुष्य अपने स्वरूप को शरीर से अलग साक्षात् करके वन्धन से मुक्त हो जाता है ।
धर्म, धर्मी, साधम्, वैधम्र्य-जिस का स्वरूप किसी दूसरे
- साधम्यै=समान धर्म=सांझा धर्म, और वैधम्र्य
अर्थातू इस पदार्थ का यह २धर्म तो उस के २पदार्थ साथ िमलता है, और यह इस का अपना अलग धर्म है, दूसरे किसी के साथ नहीं मिलता, इस प्रकार हरएक पदार्थ का जय पूरा शान हो जाय तय मोन्न होता है।