पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१४६

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
१४४
'वैशेषिक-दर्शन ।

चैोंपिक दर्शन ।

नवम अध्याय-द्वितीय आहिक ।

संगति-प्रत्यक्ष का निरूपण किया, अब अनुमान का निरूपण

अस्यदं कार्यकारणं संयोगि विरोधि समवाय चेति लैङ्गिकम् ॥ १ ॥

इस का यह-कार्य है, कारण है, संयोग है, विरोधि है, और समवायि है, यह लिङ्गजन्य (ज्ञान) है ।

व्या-कार्य से कारण का, कारण से कार्य का, संयोगि से संयोगि का, विरोधि से विरोधि का, समवायि से समवायि का, ऑर एकाथेसमवाय स एकाथ समवाय का जा ज्ञान होता है, वह लैङ्गिक=लिङ्गजन्य=चिन्ह से जाना गया (अनु मान ज्ञान ) कहलाता है। कार्य से कारण का अनुमान, जैसे नदी की वाढ़ आदि देख कर ऊपर हुई दृष्टि का अनुमान होता है। कारण से कार्य का अनुमान, जैसे मेघ की उन्नति विशेष देख कर दृष्टि का अनुमान होता है। शेप उदाहरण पूर्व (१ । १ । ९ में ) दिखला दिये हैं।

संस-अनुमान की सत्यता का परिचायक क्या है, इस पर कहते हैं ।

अस्येदं कार्यकारण सम्बन्धश्चावयवाटू भवति २

इस का यह है? इस प्रकार कार्य कारण का सम्बन्ध अवयव से होता है ।

व्या-इस का यह कार्य है, इस का यह कारण है, इस प्रकार कार्य कारण का सम्वन्ध अनुमान वाक्य के अवयव