हेतु, अपदेश, लिङ्ग, प्रमाण और करण (ये सव) एक वस्तु हैं ( अपदेश शब्दव्यवहार का नाम है. और अपदेशा लिङ्ग का पर्यायवाचक है । इस से भी सिद्ध है, कि शब्द व्यवहार लिङ्ग विशेष है, और शब्द ज्ञान लैङ्गिक ज्ञान है )
अस्यद मितिबुद्धयपेक्षितत्वात् ॥ ५ ॥
इम का है यह ? इस बुद्धि की अपेक्षा वाला होने से व्या-जैसे लैङ्गिक ज्ञान में * यह इस का है ' अर्थात् धूम अगि का है । नदी की वाढ़ दृष्टि की है, इसाढि परस्पर नियत सम्वन्ध का ज्ञान होता है । इसी प्रकार शाब्दज्ञान में * यह इस वाक्य का अर्थ है ? इत्यादि नियत सम्वन्ध का ही ज्ञान होता है। इस लिए शाब्ढ अनुमान के अन्तर्गत है। इसी प्रकार गवय गौ की नाई होता है? यह सुन कर वन गें गौ की नाई पशु को देख कर * इस का नाम गवय है * यह जो ब्रान उत्पन्न होता है। यह उपमान भी अनुमान के अन्तर्गत है । यहां भी गीसदृशा ‘पशु का नाम गवय है? यह नियत सम्बन्ध प्रतीत होता है। इसी प्रकार यह हट्टा कट्टा चैव टिन को कुछ नहीं खाता है ' इतना सुन कर सुनने वाला जो यह परिणाम निका लता है, ‘अर्थात् रात को खाता है ? यह अर्थापत्ति भी अनु मान के अन्तर्गत है। क्योंकि यहां भी हट्टा कट्टा वने रहने का औौर पुष्ट भोजन का नियत सम्वन्ध है । औग 'यहां घड़ा वृहीं हूँ * इद -ो अभाव का ज्ञान , ह वड़ दी अनुएलब्धि से होता है. यह अनुपलब्धिभी अलग प्रमाणनहीं किन्तु अभावज्ञान मत्यक्ष मे होता है. यह पूर्व दिखलादिया है। इस के पास लाख