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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन। प्रतियोगि * निरूपण के अधीन होता है, इसलिए उस का अलग उद्देश नहीं किया । पदार्थो की शिक्षा देन के तीन क्रम हैं-उद्देश, लक्षण और परीक्षा । बतलाने योग्य पदार्थ का निरा नाम लेना उद्देश है, जैसे यहां द्रव्य, गुण इत्यादि नाम लिए हैं, यह पदार्थों का उद्देश है । जिस का नाम लिया गया है, उस को उद्दिष्ट कहते हैं, जैसे यहां द्रव्य, गुण । असाधारण धर्म लक्षण होता है, जैसे उष्ण स्पर्श तेज का, क्योंकि उश्ण स्पर्श तेज का असाधारण धर्म है, बिना तेज के कहीं नहीं पाया जाता, पत्थर और पानी आदि जव गर्म होते हैं, तो वे तेज के संयोग से ही होते हैं, स्वत: उन में गर्मी नीं । वहगम तेज की ही होती है, इसलिए उष्ण स्पर्श तेज का असाधारण धर्म है, अतएव यह तेज का लक्षण है। जिस का लक्षण हो उस को लक्ष्य कहते हैं, और जव यह जितकाना हो, कि इस का लक्षण हो चुका है, तो उस को लक्षित कहते हैं। लक्षित का यह लक्षण वन सकता है वा नहीं, इस विचार का नाम परीक्षा है, परीक्षा के योग्य को


  • ‘यस्याभाव. स प्रतियोगी' जिस का अभाव हो, वही अभाव

का प्रतियोगी होता है । जैसे नीलांभाव का प्रतियोगी नील है, नील और नीलांभाव में से नील के ही जानने की आवश्यकता है, जो नील को जानता है, वह, 'यहां नील नहीं, वा यह नील नहीं। इस बात को अपने आप जान लेता है । और जो नील को नहीं जानता, उस को * यहाँ नील नहीं, वा यह नील नहीं' झान भी नहीं हो सकता, अतएव अभाव का निरूपण प्रतियोगिनिरूपण के अधीन है।