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'वैशेषिक-दर्शन ।

धातु और घी आदि भी तपाए हुए वहने लगते हैं । स्नेह =जोड़ने का धर्म भी जल का है ।

शब्द केवल आकाशा का धर्म है ।

बुद्धि सुख दुःख इच्छा द्वेष प्रयत्र धर्म अधर्म और भावना ये केवळ आत्मा के गुण हैं ।

वेग उन का गुण है, जो दिशा की सीमा में हैं अर्थात् मूर्त हैं।

( ९) कर्म पांच हैं-उत्क्षेपण=ऊपर फेंकना, अपक्षेपण= नीचे फैकला, आकुञ्चन-सकोड़ना, प्रसारण-फैलाना, गमन= अन्य स भकार की क्रिया ।

(१०) जिस धर्म मे भिन्न व्यक्तिये एक श्रेणि की प्रतीत होती हैं, वह सामान्य कहलाता है, जैसे पशुओं में पशुत्व, मनुष्पा म मनुष्यत् ।

(११) जिस घर्म से व्यक्तियों में विशेपत्व प्रतीत होता है, वह विशेष कहलाता है।

(१२) ममवाय, धर्म का धर्मी के साथ जो सम्बन्ध है, वह समवाय है ।

इति वैशेषिक शास्त्रार्थ मंग्रहः ।