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'वैशेषिक-दर्शन ।

वैशेषिक दर्शन । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेप, ऑर प्रयत्न ये आत्मा के गुण हैं। गुरुत्व (भार) भारी वस्तुओं का । द्रवत्व (वहने का गुण) कहती हुई वस्तुओं का । मेस्कार-तीन प्रकार का है-भावना-स्मृति कराने वाला संस्कार, आत्मा का ! वेग, चलने वाले द्रव्यों का। और स्थिति स्थापक (पहली अवस्था में लाने वाला) पृथिवी आदि का । धर्म अधर्म आत्मा के और शब्द आकाश का गुण है ।

उत्क्षेपणमवक्षपण माकुवन्नं प्रसारणं गमनं भिति कर्माणि । ७ ।

उत्क्षेपण (ऊपर फैकना) अवक्षेपण (नीचे फैकना) आकु श्वन (सकोड़ना) प्रसारण (फैलाना) और गमन ये(५) कर्महैं।

व्या-कर्म, क्रिया ( 4 ctu0u) को कहते हैं । यह प्रत्यक्ष सिद्ध है।(कर्म द्रव्य में ही रहता है, गुण में नही। जब घोड़ा द्वैौड़ना है, तो वह कर्म घोड़े में हुआ है, उस के रंग में कोई कर्म नहीं हुआ । यदि रंग में भी अलग कर्म होता, तो रंग घोड़े से अलग भी हो जाता, वा वेग की दौड़ में कभी न कभी कुछ आगे पीछे होता। ये कर्म पांच ही प्रकार के हैं, उत्क्षेपण, अव क्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण और गमन ।

भक्ष-कर्म तो और भी वहुत हैं, जैसे हिलना, डोलना, घूमना, फिरना, वहना, जलना, उड़ना, इत्यादि ।

उत्तर-सवकये कर्म हीं गातविशेष है, इस लिए गमन के अन्तर्गत हैं, अलग नहीं ।